पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८२

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बगुला के पंख तुम्हारे हाथ में है । सवा दो करोड़ रुपयों का बजट है । हंसी-खेल नहीं । बड़ी- बड़ी रियासतों का भी बजट इतना नहीं होता । यह दिल्ली शहर है, भारत की राजधानी । और तुम्हींको एक दिन चेअरमैन की कुर्सी पर भी बैठना है । तुम्हें सब पहलुओं पर अच्छी तरह विवेचन करना है । दिल्ली में बड़े-बड़े कांइयां लोग हैं, फिर यहां तो गुटबाज़ी और गुण्डागर्दी का भी तुम्हें सामना करना है। तुम्हें वे सब बातें ध्यान में रखनी चाहिएं जिनसे जनता का सीधा सम्पर्क है । तुम नज़र नागरिकों की सुख-सुविधा पर रखना। लोगों की नुक्ताचीनी पर ध्यान नहीं देना। याद रखो कांग्रेस पार्टी का लीडर होने के नाते तुम्हें ही अब सब झोंक झेलनी पड़ेगी । कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेस की किरकिरी हो जाए और मुझे मुंह दिखाने की जगह न रहे ।' 'लेकिन भाई साहब, मैंने तो कभी स्पीच दी ही नहीं है। डरता हूं कहीं भद्द न हो जाए।' 'इस तरह डरने से तो काम चलेगा नहीं मुंशी । जव अोखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर ? फिर हुल्लडबाज़ी से घबराना क्या ? वहां गए हो तो कड़े से कड़ा मोर्चा लेना होगा। ये तथ्य और अांकड़े हैं । मैं लिख लाया हूं। सफाई, स्वास्थ्य-विभाग, शिक्षा और पानी की व्यवस्था पर सबसे अधिक खर्चा करना है । खाना खाकर वस पिल पड़ो। अभी तमाम रात पड़ी है तैयारी करने को।' 'खैर देखूगा । जो बन पड़ेगा, करूंगा । लाइए कागज़ दीजिए। और जो कुछ नोट कराना हो, करा दीजिए।' 'पहले तुम इन कागज़ों को एक नज़र देख जागो और अपने जहन में सब मामला क्रम से जमा लो। फिर सुबह हम लोग बैठकर सब तैयारी कर लेंगे।' 'खैर, तो फिर ज़रा मुझे एक घण्टे की छुट्टी दीजिए । एक चक्कर मैदान का लगा आऊं । फिर काम में जुटूं।' 'यही करो भाई । मैं तो अब सोऊंगा।' जुगनू वहां से जो चला तो सीधा नवाब के पास पहुंचा। नवाब का धन्धे का वक्त था। गाहक आ-जा रहे थे। इस वक्त जुगनू को देखकर उसने ज़रा त्योरियां चढ़ाईं । पर जुगनू ने कहा, 'दोस्त, इस वक्त मैं तुम्हारे काम में ज्यादा हारिज नहीं होऊंगा। लेकिन तुमने सुना होगा कि मैं वाइस-चेअरमैन हो गया हूं।'