पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८१

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बगुला के पंख जो रात भर उसे परेशान करते रहे थे। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसका मन और भी डावांडोल हो उठा । रह-रहकर वह सोच रहा था कि कहां के झंझट में आ फंसा है । उसे यहां से भाग चलना चाहिए। पर भाग- कर जाए कहां ? उसे सबसे अधिक रुचि नवाब की सोहबत में हुई थी। वह चाह रहा था कि चलकर अभी नवाब से मुलाकात करे । परन्तु इसी समय शोभाराम ने उसे फिर बुला भेजा। पद्मा ने आकर कहा, 'वे तुम्हें बुला रहे हैं। नाश्ता भी वहीं कर लेना।' जुगनू ने चाहा कि वह एक बार पद्मा के मुंह की ओर देखे, उससे कुछ बात करे । पर उसका साहस न हुआ । फिर उसे यह समझने में ज़रा भी देर न लगी कि पद्मा का स्वर निरुद्वेग और स्नेहसिक्त है। उसकी छाती पर से कुछ बोझ-सा उतर गया और कपड़े पहनकर शोभाराम के कमरे में आया । शोभाराम भी कपड़े पहनकर तैयार था। उसने झट मुद्दे की बातों पर बहस करना आरम्भ कर दिया। पद्मा नाश्ता ले आई। नाश्ता करके वे दोनों साथ ही साथ घर से बाहर हुए। कमेटी में बहुमत कांग्रेस का था । पार्टी का लीडर जुगनू था। उसकी पीठ पर शोभाराम का हाथ था। अतः वह वाइस-चेअरमैन चुन लिया गया। इसमें कुछ भी दिक्कत न हुई । कुछ स्वतन्त्र सदस्य भी कांग्रेस के पक्ष में हो गए। उनके नेता लाला बुलाकीदास चेअरमैन चुन लिए गए। वे शहरी वार्ड के प्रभावशाली पुरुष थे। पैसेवाले थे, बेतरह पैसा उन्होंने खर्च किया था। कांग्रेस ने उनसे सांठ-गांठ करके उन्हें चेयरमैन और कांग्रेसी सदस्य जुगनू को वाइस-चेयरमैन बना लिया। जनसंघियों ने बहुत जोर मारा, परन्तु उनकी एक न चली। २१ जशन और मुबारकबादियों की सरगर्मी जब खत्म हुई तो अब बजट की बारी आई । शोभाराम ने कहा, 'भई मुंशी, बस यही तुम्हारी अग्निपरीक्षा है । भाषण तैयार कर लो । बजट पर यह तुम्हारा पहला भाषण है । वह ऐसा मार्के का हो कि सींक खड़ी रहे । बस, यह समझ लो कि कांग्रेस की इज्जत