पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८५

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बगुला के पंख राम की ओर देखा और फिर एक नज्म तरन्नुम के लहजे में पढ़ी। गलेदराज़ी में भला जुगनू को कौन पा सकता था ? नज़्म यह भी नवाब की बनाई हुई थी। नज़्म की समाप्ति पर फिर तालियों की गड़गड़ाहट से सभा-भवन गूंज उठा। जुगनू ने अपना भाषण जारी रखा, उसका ध्यान बिरादरी की ओर गया। खून ने जोश मारा। वह बोला, 'शहर की सफाई का दारोमदार किनपर है ? उन- पर जिन्हें आप भंगी और मेहतर कहते हैं, जिनकी बहू-बेटियां भोर के तड़के ही उठकर मैले के टोकरे सिरों पर लादे आपके घरों की सफाई करती हैं। उन्हें पीढ़ियों से आपके ये नरक ढोने पड़े हैं और आपने कभी उनकी ओर हमदर्दी की नज़र से नहीं देखा। कभी आपने उन्हें अपना साथी, एक नागरिक नहीं समझा। कभी आपने इन्सान नहीं समझा, सब मानवीय अधिकारों से वे वंचित हैं । हिन्दू समाज का वह गला-सड़ा अंग है। महात्मा गांधी ने उन्हें हिन्दुओं में मिलाए रखने के लिए जान की बाज़ी लगा दी थी। मैं यह जानना चाहता हूं कि आपने उनके लिए क्या किया है ?' कांग्रेसी बेंचों से महात्मा गांधी की जय का नारा बुलन्द हुआ। जुगनू ने एक बार रुककर सभा पर और शोभाराम पर नज़र डाली। फिर आवाज़ ज़रा ऊंची करके कहा, 'मैं यह पूछना चाहता हूं कि आप अब उनके लिए क्या करना चाहते हैं ? वे अब हमारे समाज से पृथक्, गन्दे सुअरों की भांति नहीं रह सकते। हमें उनकी तनख्वाहें बढ़ानी होंगी। उनके लिए अच्छे हवादार मकान, रोगी होने पर चिकित्सा और दूसरी सब सुविधाएं देनी होंगी। महात्मा गांधी ने उन्हें हरिजन कहा है। हरिजनों को प्रेम से गले लगाना भगवान को प्रसन्न करना है।' सभा-भवन तालियों से गूंज उठा। एक बार जुगनू ने फिर शोभाराम की ओर देखा। अब उसे आगे नहीं सूझ रहा था कि क्या कहे । पर नवाब ने उसे गुरुमन्त्र दिया था कि जब ऐसा अवसर पाए तो वह नज़्म पढ़ना शुरू कर दे। शोभाराम का इशारा पाकर उसने फिर एक नज्म पढ़ी । एक जनसंघी सदस्य ने उठकर कहा, 'क्यों साहब, यह क्या कोई मुशायरा हो रहा है या...' उनकी बातचीत में ही कई सदस्य बोल उठे। 'चुप रहो, 'चुप रहो, । कहने दो।' और जुगनू ने कहा, 'मेरे दोस्त को नज्म अच्छी नहीं लगती। वे