बगुला के पंख व्यक्तित्व में होती है, पद में नहीं। बहुधा ऐसा भी होता है कि मनुष्य की त्रुटियां एवं अपराध भी उसके गुणों और विशेषताओं के पूरक प्रतीक बन जाते हैं। ऐसे पुरुष चापलूसों और प्रशंसकों के महत्त्व को ठीक-ठीक समझते हैं। निस्सन्देह वे इतनी समझ रखते हैं कि इन प्रशंसकों को तिरस्कार की दृष्टि से देखें । परन्तु यह भी वे जानते हैं कि उनकी महत्ता की सारी जमा-पूंजी भी वही हैं। सारी बातों के देखने से हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि जुगनू में एक नैसर्गिक प्रतिभा तो थी ही और उसीने उसके व्यक्तित्व को अनुपम और अपराधों को क्षम्य बना दिया। कलाकार चाहे संगीतज्ञ हो या कवि, वह चाहे बाह्य आडम्बर या सज-धज पर आधारित हो या अन्तःसौन्दर्य पर, उसकी प्रवृत्ति का मूलाधार वासना ही होती है । वासना का कला से, बल्कि कहना चाहिए जीवन की महत्त्वाकांक्षा से, घनिष्ठ सम्बन्ध है । इसीसे कलाकार की कला में और उसके जीवन में जहां एक ओर लालित्य होता है, वहां दूसरी ओर पाशविकता भी होती है । ऐसा पुरुष अपने कृत्यों से महानता प्रकट करता है। उसके जीवन-क्रम और जीवन-विकास की कहानी आकर्षक और कौतूहलपूर्ण बनती जाती है और उसके चरित्र में उसके आसपास के लोगों का एक उत्सुक कौतूहल और अद्भुत " रुचि उत्पन्न हो जाती है और अधिकांश में वही उस व्यक्ति की कीर्ति का कारण भी होती है। मनुष्य कलाकार हो चाहे राजनीतिज्ञ, पर ऐसे लोग बिरले ही होते हैं जो मानव-रुचि को अपनी ख्याति का माध्यम बना सकने में सक्षम हों। ऐसे पुरुषों की कुख्याति भी जनता की रुचि को अपनी ओर खींच लेती है। ऐसे लोग जब जन-साधारण में प्रमुख पद प्राप्त कर लेते हैं तो उनमें जनता इस कदर दिलचस्पी लेने लगती है कि उनके जीवन की असामान्यताएं रोमांस बन जाती हैं। जुगनू के जीवन में रोमांस था, विचित्रता थी, भयंकरता भी थी। उसके चरित्र में करुणाहीन विद्रोह था। उसके जीवन के तथ्यों की व्याख्या मनोरम है । उसका दुश्चारित्र्य ही उसका आकर्षण था। भले ही अज्ञान में ही सही, पर वह अपने भाग्य से संघर्ष करनेवाला योद्धा था। उसने भाग्य' से युद्ध किया और परिस्थितियों पर सवारी गांठी। वह परिस्थितियों का पक्का शह- सवार था। बजट के भाषण के बाद लोगों की प्रशस्तियों और हर्षध्वनियों के बीच वह जब सभा-भवन से निकला तो शोभाराम की आंख बचाकर वह वहां से खिसक
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