पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८८

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5€ बगुला के पंख 7 गया और सीधा नवाब के पास जा पहुंचा । नवाब उसे देखते ही उस गन्दे-से रैस्टोरां से बाहर निकल आया। उसने कहा, 'दोस्त, यहां नहीं । चलो हम कहीं एकान्त में बातचीत करेंगे । तुम्हारी स्पीच सुनकर मैं अभी चला आ रहा हूं। अब तुम्हारी फतह है।' दोनों ने बस पकड़ी और इण्डिया गेट जा पहुंचे । २४ इण्डिया गेट के सामने फैले हुए प्रशस्त लान में बैठकर दोनों दोस्तों ने दिल की घुण्डी खोल दी । समझ लीजिए रत्न-कांचन संयोग हो गया । नवाब ने कहा, 'अब कहो दोस्त, क्या इरादा है ?' 'तुम्हीं बताओ, उस्ताद जो ठहरे।' 'तो एक ही बात में सुन लो, दुनिया भर से लड़ाई ठान लो।' 'अच्छी बात है।' जुगनू के मन में बहुत-सी बातें उभर आईं। उसने सोचा, 'मैं जात का भंगी, संस्कारों से हीन, परम्परा से दलित, कुचला हुआ, समाज ने जिसे पीढ़ियों से उभरने का अवसर नहीं दिया। आज परिस्थिति ने मुझे सामर्थ्य दी है तो क्यों न मैं दुनिया भर से लड़ाई ठान लूं ? उस दुनिया से जिसने मुझे दबोच रखा था। अब जो मैंने उभार खाया है तो दुनिया के रहम पर नहीं, अपनी प्रवंचना ही की खातिर । आज भी यदि मैं कहूं कि मैं एक अशिक्षित भंगी हूं, तो आज ही मेरे विकास का खात्मा हो जाए। मैंने दुनिया से लड़कर ही तो आज यह फतह पाई है और यह लड़ाई अब जारी ही रहेगी।' -उसके मुख पर कठोर भाव उभर आए। नवाब ने कहा, 'क्या सोच रहे हो दोस्त ?' 'यही कि डटकर लड़गा, अपने से भी और दुनिया से भी, भले ही हार खानी पड़े।' 'दोस्त, तुम हार खाने के लिए पैदा नहीं हुए हो । फतह तुम्हारी पेशानी पर है।' 'तो उस्ताद, अब राह दिखाओ । बस, पत्थर निगल गया हूं, वह नुस्खा