पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/२३

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अथ बाण भट्ट की आत्मकथा लिख्यते प्रथम उच्छवास जयन्ति बाणासुरमलिलालि त दशास्यचूडामणि चकचुम्वनि सुरासुराधीशशिखान्तशायिनो भवच्छिवः यम्बकपापांसदः ॥१॥ यद्यपि बाण भट्ट नाम ही से मेरी प्रसिद्धि है; पर यह मेर। वास्तविक नाम नहीं है। इस नाम का इतिहास लोग न जानते, तो अच्छा था। मैंने प्रयत्नपूर्वक इसे इतिहास से लोगों को अनभिज्ञ रखना चाहा है; पर नाना कारणों से अब मैं उस इतिहास को अधिक नहीं छिपा सकतह । मेरी लज्जा का प्रधान कारण यह है कि मेरा जन्म जिस प्रख्यात वात्स्यायन-वंश में हुआ है, उसके धवल कीर्ति-पटे पर यह कहानी एक कलंक है। मेरे पितृ-पितामह के गृह वेदाध्यायियों से भरे रहते थे। उनके घर की शुक-सारिकाएँ भी विशुद्ध मन्त्रोचारण कर लेती थीं, और यद्यपि लोगों को यह बात अतिशयोक्ति जंचेगी; परन्तु यह सत्य है कि मेरे पूर्वजों के विद्यार्थी उनकी शुकसारिकाश्रों से डरते रहते थे । वे पद-पद पर उनके अशुद्ध पाठों को सुधार दिया करती थी। हमारे पूर्वजों के घर यज्ञ-धम से निरन्तर धूमायित रहते थे परन्तु यः सब मेरी सुनी हुई कुहानी है। अपने पिता चित्रभानु भट्ट को को मैंने स्वयं देखा है। यदि मैं कहूँ कि सरस्वती स्वयं आकर अपने पाणि-मल्लयों से मेरे पितृदेव के होम


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'१० कादम्बरी, कथामुल ३