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बाण भट्ट की आत्म-कथा

३०८ बारा भट्ट की त्मि-कथा ‘भट्टिनी स्थाएवीश्वर जाएँगी परन्तु वे वहाँ किसी की अतिथि नहीं होंगी, उनका अपना स्वाधीन राज्य उनके साथ साथ रहेगा । लोरिक- देव को तुम इस बात पर राज़ी कर लो कि उनकी कम-से-कम एक सहस्र मल्ल सेना भट्टिनी की सेवा में नियुक्त रहेगी। स्थाएवीश्वर में भट्टिनी उसी प्रकार रहेंगी जिस प्रकार स्वतंत्र देश की रानी अपने राज्य में रहती है। यह भाग्यहीना भी साथ रहेगी। स्थाण्वीश्वर के महा- राजाधिराज को भी यह अधिकार नहीं होगा कि भट्टिनी की सेविका की छाया भी छ सके। अगर निउनिया को स्थाएीश्वर के व्यवहार में घसीटा गया तो वहाँ रक्त की नदी बह जायगी। पहली बलि कान्य- कुब्जेश्वर के सभापंडित बाण भट्ट की ही होगी । तुम तैयार हो भट्ट, एक सामान्य दासी के लिये अपने प्राणों की बाजी लगा देने का साहस तुम में है ?: इस बार उसने मेरी ओर अाँख उठाई। स्वर कुछ और ऊँचा करके बोली-“भट्ट, किस अपराध पर कान्यकुब्ज़ का लम्पट- शरण्य राजा मुझे फांसी देना चाहता है। मेरे उसी अपराध के बल पर वह देवपुत्र तुवरमिलिन्द से मित्रता करना चाहता है। मेरी जैसी असहाय अबलाओं को दण्ड देनेवाला उसका कठोर भुज-दण्ड क्या म्लेच्छवाहिनी से अपनी प्रजाओं को नहीं बचा सकता है सचमुच तुम विश्वास करते हो आर्य, कि इस निर्वीय शासन-तंत्र से देवपुत्र की सेना का मिलाप होते ही अर्यवर्त रक्त स्नान से बच जायगा ? आर्यावर्त के समाज के मूल में घुन लग गया है, उसे महानाश से कोई नहीं बचा सकता। मैं पूछती हूँ आर्य, क्या छोटा सत्य बड़े सत्य की विरोधी होता है १ निपुणिका ने उत्तर पाने की आशा से मेरी और देखा। मैं इस प्रश्न का कोई प्रयोजन नहीं समझ सका, सहज भाव से उत्तर दिया--"सत्य अविरोधी होता है, ऐसा ही तो सुना है । निपु- शिका ने आश्वस्त होकर कहा---‘आर्य, तुम्हीं मेरे देवता हो, तुम्हीं मेरे सत्य हो । तुम्हारे साथ दीर्घ काल तक रहने का सौभाग्य मुझे मिला