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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अत्म-कथा उद्देश्य से कहा-‘महामाया माता ने आधा सत्य हो पाया है देवि, अाधा और भी पा सकतीं तो समझतीं कि छुई-मुई की भाँति मुरझा सकना कितनी बड़ी शक्ति का सुप्त रूप है ।। भट्टिनी के मुख पर स्मित रेखा खेल गई । एक अपूर्व रस माधुरी उनके अधरों पर अचानक उदय हो आई, नयन कोरकों में एक प्रकार का लोल-लोल-विलास चमक गया, बोलीं-“तुम भी तो उस आधे सत्य से वञ्चित हो भट्ट ! भट्टिनी के इस परिहास का अर्थ मेरी समझ में आया लेकिन क्या उत्तर द, यह ठीक नहीं कर सका। सचमुच ही तो मैं उस आधे सत्य से वञ्चित हूँ। पिता के हृदय में अपनी सन्तति के प्रति जो ममता है वह कितनी बड़ी शक्ति है, यह मैं केवल अनुमान के बल पर ही तो जानता हूँ। मुझे क्या महामाया की आलोचना करने का अधिकार है ? भट्टिनी ने मेरी कमज़ोर ठीक पहचान ली है। मेरी झेप से भट्टिनो का मुख और भी प्रसन्न हो गया। उन्होंने फिर कहा-- मैं दूसरी बात सोच रही थी भइ । महामाया ने ठीक कहा है कि राजाशों श्रौर राजपुत्रों की ओर ताकते रहने से आर्यावर्त का उद्धार नहीं होगा। परन्तु यह भी आधा ही सत्य हैं ।—भट्टिनी फिर चुप हो गई, वे कुछ कहना चाहती थीं पर उनके वाक्य सहज-कौलान्य के भार से दब गए । मैं उनके मुख की ओर उत्सुकतापूर्वक देख रहा था। उनकी अाँखें झुकी हुई थीं, ग्रीवा अवनमित थी, और अनव- धानता-वश उत्तरीय-प्रान्त सीमन्त देश से हट गया था । धन मेचक केशपाश के बीचों बीच उज्वल सोमन्त रेखा ऐसी मनोहर दिख रही थी मानी मन्दाकिनी की धवल-धारा क्षणभर के लिये पार्वती की चिकुर राजि के मध्य में श्राई हो और श्राकर रास्ता ही भूल गई हो । वह दिन कितना शुभ होगा जब इस सीमन्त रेखा पर सिन्दूर की अरुणिमा दिखेगी, जिस दिन वह इस प्रबल कवरी भार की तिमिरकान्ति बालसूर्य को बन्दी बनायगी, जिस दिन चन्द्र-मण्डल के मध्य उषः रेखा स्फुरित