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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा श्रास्ट्रिया देशवासिनी दीदी ही हैं ! उनके इस वाक्य का क्या अर्थ है कि 'बाणभट्ट केवल भारत में ही नहीं होते ! श्रास्ट्रिया में जिस नवीन ‘बा भट्ट' का आविर्भाव हुआ था वह कौन था । हाय, दीदी ने क्या हम लोगों के अज्ञात अपने उसी कवि प्रेमी की अाँखों से अपने को देखने का प्रयत्न किया था ! यह कैसा रहस्य हैं। दीदी के सिवा और कौन है जो इस रहस्य को समझा दे। मेरा मन उसे ‘बाणभट्ट का संधान पाने को व्याकुल है । मैंने क्यों नहीं दीदी से पहले ही पूछ लिया । मुझे कुछ तो समझना चाहिए था । लेकिन जीवन में जो भल एक बार हो जाती है वह हो ही जाती हैं ! | पत्र पढ़ने के बाद मेरे चित्त की यही प्रतिक्रिया हुई है । यदि मेरा अनुमान ठीक है तो साहित्य में यह अभिनव प्रयोग है । मध्ययुग के किसी-किसी कवि ने राधिका की इस उत्कट अभिलाषा का वर्णन क्रिया है कि वे समझ सकती कि कृष्ण उनमें क्या रस पाते हैं। श्री कृष्ण ने भी, कहते हैं, राधिका की दृष्टि से अपने को देखना चाहा था और इसीलिये नवद्वीप में चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए थे। काव्य की और धर्म साधना की दुनिया में जो कल्पना थी उसे दीदी ने अपने जीवन में सत्य करके दिखा दिया। मुझे इस बात से एक अपूर्व आनंद अनुभूत हो रहा है। परन्तु सहृदयों के मार्ग में इस व्याख्या को मैं बाधक नहीं बनाना चाहता । इसीलिये मैं साहित्यिक समीक्षा के संकल्प से विरत हो रहा हूँ । कथा जैसी हैं वैसी सहृदयों के सामने है |-यो०