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बाण भट्ट की आत्म-कथा

क्या मैं भी किसी अमृत-पंक में पैंसने जा रहा हूँ। परन्तु अब सोचना बेकार था ! निपुणिक के एक इशारे पर मैं अनुचरी की भाँति उसने पीछे हो लिया। न-जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि नीचे से ऊपर तक सारी प्रकृति में एक अवश अवसाद की जट्टिमा छाई हुई है। नि पुणिका ने अत्यन्त संक्षेप में मुझे मेरा कर्तव्य बताया था। उसने अपने पक्ष के शौचित्य-स्थापन की परवा बिल्कुल न की उसकी बातचीत में मेरी अवज्ञा कहीं भी प्रकट नहीं हुई ; पर इतना तो मुझे शुरू से अन्त तक लगा कि वह मुझे इस कार्य-साधन में निमित्त-मात्र मानती है, उसके असली सहायक तो महावराह हैं। उसके संकल्प की सचाई का प्रमाण उसकी बड़ी-बड़ी अश्रुपूर्ण अाँखे थीं। मुझे उसने बताया था कि छोटा राजकुल प्रतापी मौखरियों का अन्तिम चिह्न हैं । जब से महा- राजाधिराज श्री हर्षवर्धन ने अपने बहनोई का राज्य भी अपनी ही छत्रछाया में ले लिया है, तब से उक्त बहनोई के एक दूर के सम्बन्धी को–जो मौखरि-सिंहासन का उत्तराधिकारी हो सकता था---इस नगर में अाश्रय मिला है। इधर की जनता में अब भी मौखरि-वंश के प्रति प्रबल सम्मान-भाव वर्तमान है । भौखरि-वंश का यह सम्बन्धी थोड़े ही दिनों में स्थाएवीश्वर में रह रहा है। इसके अन्तःपुर को ही यहाँ छोटा राजकुल कहा जाता है । निपुणिका ने इस छोटे राजकुल के विभव को ज़रा विस्तारपूर्वक है। समझाया और फिर वहाँ की कलंक- वार्ता को भी उस विस्तार के साथ व्यक्त किया। कान्यकुब्ज की रक्षणशील जनता में मौखरियों के प्रति आदर शौर संभ्रम का भाव है, चतुर महाराज इर्षवर्धन इस बात को जानते हैं। इसीलिए मौखरि- वंश का यह दावेदार स्थाएवीश्वर में महाराज? कह कर ही पुकारा जाता है। उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया है; पर सम्पत्ति दी गई है। इसीलिए उसमें एक अनुत्तरदायी भोग-लिप्सा बढ़ गई है, जो अब अत्यन्त अनाचार का रूप धारण कर चुकी है। महाराजाधिराज