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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बारा भट्ट की आत्मकथा ही उत्तर दे दिया कि उनकी प्रत्येक आज्ञा मुझे शिरोधार्य है। निपु- गिको बड़ी चतुर स्त्री थी। वह तत्क्षण लौट कर आर्य वाभ्रव्य के पास चली गई और उन्हें साथ लेकर लौट आई। मैं कुछ समझ नहीं सका । आर्य बाभ्रव्य ने परिचारिकश्रिों की मुख्यर को बुला के कहा--भावी महादेवी आज अपनी इन दो सहचरियों के साथ ही प्रमोद-वन का भ्रमण करना चाहती हैं। उनका श्रादेश है कि उनके किसी कार्य में तुम लोग अन्तराय न बनो ।' परिचारिकाशों ने संभ्रम के साथ सुना और एक स्वर से भावो महादेवी की जय हो !' कह कर दूसरी ओर चली गई। | ‘भावी महादेव' प्रमोद-वन के बाहर से घूमती हुई वृक्ष-वाटिका की ओर चल दीं। वाटिका के बीचोंबीच एक विशाल वापी थी । सारी बापी कुमुद-कल्हारों से परिपूर्ण थी । चाँदनी की शुक्लता ने उसकी स्वच्छता को और भी गाढ़ बना दिया था । हम तीनों वहाँ पहुँच कर एक गए। राजकन्या ने निपुणिका की अोर देख कर कहा--'अव ! श्रौर प्रस्तर-निर्मित घाट पर अवसन्न-सी होकर बैठ गई। नि पुगि का ने कहा-“श्रा, महावराह सहायक है । भगवान् को साधुवाद दो कि दक्ष भट्ट जैसा साहस और भद्र पुरुष हमें सहायक मिल गया है । झिझक छोड़ो । उठो। राजकन्या ने मेरी र प्रश्न- भरी दृष्टि से देखा। मैंने धीरे-धीरे किन्तु दृढ़ता से का-‘आर्ये, अभागे दक्ष को एक पुण्य-कार्य करने का अवसर मिला है । साहस करो । यमराज भी तुम्हारा कई अनिष्ट नहीं कर सकता ।' निपुण का ने एक बार मेरी श्रोर देखा और राजकन्या के उत्तर की प्रतीदा किए विन! मुझसे कहा---‘भट्ट, नेपथ्य उतार दो । महावराह का प्रसाद-वस्त्र धारण करो और प्रान्त वृक्षों की शाखा के सहारे चहारदीवारी लाँच जा। फाटक पर हमारी प्रतीक्षा करना। मैं सब समझ गया। वाटिका के एक प्रान्त में जाकर मैंने पुरुष-वस्त्र धारण किया। निपु-