श्रोक शोक-संज्ञा पुं० घर । संज्ञा स्त्री० कु । श्रोकना - क्रि० भ० १. कै करना । २. भस की तरह चिल्लाना । श्रोकपति-संज्ञा पुं० १. सूर्य्य । २. चंद्रमा | श्रोकाई - संज्ञा स्त्री० 1 श्रीकारांत - वि० जिसके अंत में "प्रो" अक्षर हो । १२५ श्रखद + - संज्ञा पुं० दे० "औषध" । श्रोखली - संज्ञा स्त्री० ऊखल | श्रोग - संज्ञा पुं० कर | चंदा | श्रोध - संज्ञा पुं० समूह | श्रोछा - वि० १. क्षुद्र । २. छिछला । ओछापन - संज्ञा पुं० नीचता । क्षुद्रता । श्रोज-सज्ञा पुं० १. प्रताप । २. प्रकाश । ओजस्विता -संज्ञा स्त्री० तेज । कांति । श्रोजस्वी - वि० [स्त्री० श्रोजस्विनी ] शक्तिवान् । प्रभावशाली । श्रोझल -संज्ञा पुं० श्रोट । श्राड़ । श्रभा - संज्ञा पुं० १. सरजूपारी, मथिल और गुजराती ब्राह्मणों की एक जाति । २. भूत-प्रेत झाड़नेवाला । श्रीभाई -संज्ञा स्त्री० श्रोफा की वृत्ति । नोट-संज्ञा स्त्री० श्रढ़ । श्रोटना- क्रि० स० १. कपास को चरखी में दबाकर रूई और बिनौलेां को अलग करना । २. अपनी ही बात कहते जाना । नोटनी, ओटी -संज्ञा स्त्री० कपास श्रो- टने की चरखी । नोटगना + - क्रि० भ० १. सहारा लेना । २. थोड़ा आराम करना । ओठंगाना | - क्रि० स० १. सहारे से टिकाना | २. किवाड़ बंद करना । श्रीराहना श्रव-संज्ञा पुं० वह राग जिसमें पाँच ही स्वर हो । श्रोढ़ना- क्रि० स० १. शरीर के किसी भाग को वस्त्र आदि से श्राच्छादित करना । २. अपने ऊपर लेना । संज्ञा पुं० ओढ़ने का वस्त्र । श्रोढ़नी - संज्ञा स्त्री० स्त्रियों के प्रोढ़ने का वस्त्र । श्रीदर - संज्ञा पुं० बहाना । श्रीदाना - क्रि० स० ढांकना । श्रोत-प्रोत - वि० ० बहुत मिला-जुला । श्रद-सज्ञा पुं० नमी । वि० गीला । श्रोदन - संज्ञा पुं० पका हुआ चावल । श्रदरना | - क्रि० भ० विदीर्ण होना । श्रदा- वि० गीला । ओदारना + - क्रि० स० विदीर्ण करना । श्रनचन - संज्ञा स्त्री० वह रस्सी जो चारपाई के पायताने की ओर बुनावट को खींचकर कड़ा रखने के लिये लगी रहती है। श्रीनचना- क्रि० स० चारपाई के पाय- ताने की खाली जगह में लगी हुई रस्सी को बुनावट कढ़ी रखने के लिये खींचना । श्रनवना- क्रि० प्र० दे० "उन. वना" । श्रीप-संज्ञा स्त्री० चमक । श्रीपना - क्रि० स० चमकाना । श्रोफ - भव्य ० श्रोह | श्रीम् - संज्ञा पुं० प्रणव मंत्र | आकार । श्रीर-संज्ञा खो० तरफ़ । संज्ञा पुं० छोर । श्रोराना+- क्रि० भ० समाप्त होना । श्रोराहना । -संज्ञा पुं० दे० "उखा- इना" ।
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