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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१३२

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ऐन्द्रजालिक पैन्द्रजालिक - वि० इंद्रजाल करने- चाला | मायावी । पेंद्री - संज्ञा arat | स्त्री० १. इंद्राणी । ऐ-पंज्ञा पुं० शिव । अव्य० एक संबोधन । ऐक्य - संज्ञा पुं० एकत्व । २. ऐगुन -संज्ञा पुं० दे० "गुण" । ऐच्छिक - वि० जो अपनी इच्छा पर हो । ऐतहासिक - वि० इतिहास-संबंधी । ऐन-संज्ञा पुं० दे० " श्रयन" । वि० ठोक । ऐनक - संज्ञा स्त्री० श्रख में लगाने का चश्मा । ऐपन -संज्ञा पुं० हल्दी के साथ गीला पिसा चावल जिससे देवताओं की में थापा लगाने हैं। पूजा ऐब-संज्ञा पुं० [वि० ऐजी ] दोष । ऐबी - वि० नटखट | - ऐया | संज्ञा स्त्री० १. बड़ी-बूढ़ी स्त्री । २. दादी । १२४ ऐयार - संज्ञा पुं० [स्त्री० ऐयारा] भूतं । ऐयारी - संज्ञा स्त्री० चालाकी । धूर्तता । ऐयाश - वि० [ संज्ञा ऐयाशी ] विषयी । ऐयाशी- संज्ञा स्त्री० भोग-विलास । ऐरा गैरा - वि० १. अजनबी | २. तुच्छ । ऐरापति: संज्ञा पुं० दे० " " ऐरावत" । ऐरावत- संज्ञा पुं० [स्त्री० ऐरावती ] इंद्र का हाथी जो पूर्व दिशा का दिग्गज है । ऐरावती -संज्ञा स्त्री० ऐरावत हाथी की हनी । ऐल - संज्ञा पुं० [हिं० महिला] १. बाढ़ । २. अधिकता । ऐश-संज्ञा पुं० श्राराम । ऐश्वर्य - संज्ञा पुं० विभूति । ऐश्वर्यवान् - वि० [स्त्री० ऐश्वर्यवती ] वैभवशाली | संपन्न | ऐस | - वि० दे० "ऐस ।" । ऐसा - वि० [स्त्री० ऐसी ] इस प्रकार का । ऐसे - क्रि० वि० इस ढंग से । ऐहिक - वि० सांसारिक । श्रो संस्कृत वर्णमाला का तेरहवाँ और हिंदी वर्णमाला का दसवीं स्वर- वर्ण जिसका उच्चारण-स्थान श्रोष्ठ और कंठ है । श्री - श्रव्य ० हाँ । अच्छा । श्रछना - क्रि० स० निछावर करना । श्रकार-संज्ञा पुं० १. परमात्मा का सूचक " " शब्द । २. सोहन चि- डिया | श्री श्रगना - क्रि० स० गाड़ो की धुरी में चिकनाई लगाना जिससे पहिया श्रसानी से फिरे | श्रठ-संज्ञा पुं० होंठ | श्रड़ा* - वि० गहरा । संज्ञा पुं० गढ़ा । श्री संज्ञा पुं० ब्रह्मा । अव्य० १. एक संबोधन -सूचक शब्द | २. मोह ।