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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१८८

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कृपनाई कृपनाई - संज्ञा स्त्री० दे० " कृपणता”। कृपा - संज्ञा स्त्री० [वि० कृपालु ] दया । कृपारण-संज्ञा पुं० तलवार । कृपापात्र - संज्ञा पुं० कृपा का अधि- कारी । कृपायतन -संज्ञा पुं० श्रस्यंत कृपालु | कृपाल + - वि० दे० "कृपालु" । कृपालु - वि० कृपा करनेवाला । कृपिणः +- वि० दे० " कृपण" । कृमि-संज्ञा पुं० [ वि० कृमिल ] छोटा • कीड़ा । कृमिज - वि० कीड़ों से उत्पन्न । कृमिरोग-संज्ञा पुं० श्रामाशय और पक्वाशय में कीड़े उत्पन्न होने का रोग । कृश - वि० १. दुबला-पतला । २. छोटा । कृशानु - संज्ञा पुं० श्रभि । कृशित - वि० दुबला-पतला । कृशोदरी - वि० स्त्री० पतली कमर- वाली (स्त्री) । कृषक - संज्ञा पुं० किसान | कृषि - संज्ञा स्त्री० [वि० कृष्य ] खेती | कृष्ण - वि० काला । संज्ञा पुं० [० कृष्णा ] १. यदुवंशी वसुदेव के पुत्र जो विष्णु के प्रधान अवतारों में हैं । २. अथर्ववेद के अंतर्गत एक उपनिषद् । ३. अँधेरा पक्ष । कृष्णचंद्र - संज्ञा पुं० दे० "कृष्ण" (१) । कृष्णपक्ष-संज्ञा पुं० अँधेरा पाख । कृष्णसार-संज्ञा पुं० काला हिरन । कृष्णा - संज्ञा स्त्री० १. द्रौपदी । २. पीपल । पिप्पली । ३. दक्षिण देश की एक नदी । कृष्णाष्टमी - संज्ञा स्त्री० भादों के कृष्ण- १८० केतक पक्ष की अष्टमी, जिस दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । कृष्य - वि० खेती करने योग्य (भूमि) । कें कें - संज्ञा स्त्री० १. चिड़ियों का कष्टसूचक शब्द | २. झगड़ा या संतोष सूचक शब्द | चली - संज्ञा स्त्री० सर्प आदि के शरीर पर का झिल्लीदार चमड़ा जो हर साल गिर जाता है । कैचुश्रा - संज्ञा पुं० सूत के आकार का एक बरसाती कीड़ा जो एक बालिश्त लंबा होता है । केचुली - संज्ञा स्त्री० दे० "केचली” । केंद्र - संज्ञा पुं० ठीक मध्य का बिंदु | २. मुख्य या प्रधान स्थान । केंद्री - वि० केंद्र में स्थित । के प्रत्य० संबंधसूचक "का" विभक्ति का बहुवचन रूप । के + सर्व कौन ? 0 सर्व० कोई | २. [ खी० केकड़ा - संज्ञा पुं० पानी का एक कीड़ा । केकय-संज्ञा पुं० १. व्यास और शाल्मली नदी की दूसरी ओर के देश का प्राचीन नाम । केकयी ] केकय देश का राजा या निवासी । ३. दशरथ के श्वशुर और कैकेयी के पिता । केकयी- संज्ञा स्त्री० दे० "कैकेयी" । केका संज्ञा स्त्री० मोर की बोली । केकी-संज्ञा पुं० मोर । मयूर । केचित् - सर्व • कोई कोई । केड़ा-संज्ञा पुं० नया पौधा । केत - संज्ञा पुं० १. घर । २. स्थान । ३. ध्वजा । केतक - संज्ञा पुं० केवड़ा । वि० १. कितने । २. बहुत