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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१९१

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कुद महज़ द महज़ - संधा स्त्री० सादी कैद । क़ैद सख्त - संज्ञा स्त्री० वह कद जिसमें कैदी के कठिन परिश्रम करना पड़े । क़ दी - संज्ञा पुं० बंदी | कैधौ । - भव्य ० अथवा । कैफ - संज्ञा पुं० नशा । कैफियत - संज्ञा स्त्री० २. ब्योरा । १. समाचार । कैफी - वि० मतवाला । कैर-संज्ञा स्त्री० तीर का फल | hart - संज्ञा स्त्री० अव्ययवत् कितनी बार । कैरव-संज्ञा पुं० [स्त्री० कैरवी ] १. कुमुद । २. सफेद कमल । ३. शत्र । करा - संज्ञा पुं० [स्त्री० कैरी ] भूरा (रंग) । वि० १. कैरे रंग का । २. कंजा । कैलास - संज्ञा पुं० १. हिमालय की एक चोटी जो तिब्बत में रावण हृद से उत्तर श्रीर है । २. शिवलोक । कैवत - संज्ञा पुं० केवट । कैवल्य - संज्ञा पुं० १. शुद्धता । २. मोक्ष । ३. एक उपनिषद् | कैसर - संज्ञा पुं० सम्राट् । कैसा - वि० [स्त्री० कैसी ] किस प्रकार का १ ? कैसे - क्रि० वि० किस प्रकार से कोकण - संज्ञा पुं० १. दक्षिण भारत का एक प्रदेश | २. उक्त देश का निवासी । कोंचना - क्रि० स० चुभाना । गोदना । कोंचा -संज्ञा पुं० दे० "क्रौंच" । संज्ञा पुं० बहेलियों की वह लंबी छड़ जिसके सिरे पर वे चिड़ियाँ फँसाने का लासा लगाए रहते हैं । १६३ कोक कोछना - क्रि० स० दे० " को छियाना" । कोंडियाना- क्रि० स० ( स्त्रियों की ) साड़ी का वह भाग चुनना जो पह नने में पेट के नीचे खोंसा जाता है । क्रि० स० (स्त्रियों के) अंचल के कोने में कोई चीज़ भरकर कमर में खोंस लेना । कोढ़ा -संज्ञा पुं० [स्त्री० अल्पा० कोंढ़ी ] धातु का वह छला या कड़ा जिसमें कोई वस्तु घटकाई जाती है । वि० जिसमें कोढ़ा लगा हो । कोंपर + - संज्ञा पुं० छोटा अधपका या डाल का पका श्राम । कोंपल | -संज्ञा स्त्री० नई और मुला- यम पत्ती । कोहड़ा - संज्ञा पुं० दे० "कुम्हड़ा” । कोहड़ौरी | - संज्ञा स्त्री० कुम्हड़े या पेठे की बनाई हुई बरी । को - सर्व ० कौन ? प्रत्य० कर्म और संप्रदान की विभक्ति । केोश्रा - संज्ञा पुं० १. रेशम के कीड़े का घर । २. टसर नामक रेशम का कीड़ा । ३. कटहल के गूदेदार पके हुए बीजकोष । कोइरी -संज्ञा पुं० साग, तरकारी आदि बोने और बेचनेवाली जाति । काछी । कोइली - संज्ञा स्त्री० वह कच्चा आम जिसमें काला दाग़ पड़ जाता है और एक विशेष प्रकार की सुगंध श्राती है । कोई - सर्व ० वि० ऐसा एक ( मनुष्य या पदार्थ ) जो अज्ञात हो । क्रि० वि० करीब करीब । कोउ । सर्व० दे० "कोई " । कोक+सर्व० कोई एक ।