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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/२३

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श्रकाज अकाज-संशा पुं० [ क्रि० काजना, बि० अकाजी ] १. नुकसान । हर्ज । विघ्न । बिगाड़ | २. दुष्कर्म | खोटा काम | * क्रि० वि० व्यर्थ । बिना काम । निष्प्रयोजन | अकाजना- क्रि० प्र० १. होना । २. गत होना । मरना । क्रि० स० हानि करना । हानि अकाट्य - वि० जिसका खंडन न हो सके । दृढ़ | मज़बूत । अकाम - वि० बिना कामना का । इच्छाविहीन । क्रि० वि० [सं० अकर्म्म.] बिना काम के । व्यर्थ । अकाय- वि० १. बिना शरीरवाला | २. शरीर न धारण करनेवाला । जन्म न लेनेवाला । ३. निराकार । अकार - संज्ञा पुं० "अ" अक्षर । अकारज-संज्ञा पुं० कार्य की हानि । नुकसान । हर्ज । अकारण - वि० १. बिना कारण का । २. जिसकी उत्पत्ति का कोई कारण न हो । स्वयंभू । क्रि० वि० बिना कारण के । बे सबब । अकारथी - क्रि० वि० ये काम | फुजूल । वृथा । अकाल - संज्ञा पुं० १. दुष्काल । दुर्भिक्ष । मँहगी । कुसमय । क्रि० प्र० - पड़ना । २. घाटा। कमी । अकालकुसुम - संज्ञा पुं० १. बिना समय या ऋतु में फूला हुआ फूल । ( अशुभ ) २. बे समय की चीज़ । अकालमृत्यु - संज्ञा स्त्री० बे समय की मृत्यु | असामयिक मृत्यु | थोड़ी १५ श्रकृत अवस्था में मरना | अकाली-संज्ञा पुं० नानकपंथी साधू जो सिर में चक्र के साथ काले रंग की पगड़ी बांधे रहते हैं। श्रकास - संज्ञा पुं० दे० "आकाश" । अकासबानी -संज्ञा स्त्री० दे० " आकाश- वाणी” । प्रकासबेल - संज्ञा स्त्री० अंबर - बेलि । श्रमर बेल । अकासी २. ताड़ी । अकिंचन - वि० संज्ञा स्त्री० १. चील । [सं० ] निर्धन । कंगाल | अकिल | -संज्ञा स्त्री० दे० " अकुल" | किलदाढ़ - संज्ञा पुं० पूरी अवस्था प्राप्त होने पर निकलनेवाला अतिरिक्त दति । कीर्ति-संज्ञा स्त्री० अयश अपयश । बदनामी | कुंठ - वि० [सं०] १. तीक्ष्ण । चोखा । २. खरा । उत्तम । अकुताना - क्रि० भ० दे० " उक- ताना" । कुल - वि० [सं० में कोई न हो । कुल का । १. जिसके कुल २. बुरे या नीच संज्ञा पुं० बुरा कुल । नीच कुल । अकुलाना - क्रि० अ० १. जल्दी करना । २. घबराना । ३. मन होना । अकुलीन - वि० तुच्छ वंश में उत्पन्न । कमीना | अकूत - वि० [सं० अ + हिं० कूतना ] जो कूता न जा सके। बहुत अधिक । अकृत - वि० १. बिना किया हुआ । २. बिगाड़ा हुआ । ३. जो किसी का बनाया न हो । स्वयंभू । ४. बिक-