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पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१०६

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लाल पानी यह कहानी १५वी शताब्दी के काठियावाड़ के सामन्ती युग के राजाओं के परस्पर घणा, द्वेष विश्वासघात और एक पेशेवर डाकृ के परम उत्सर्ग की ऐतिहासिक कहानी है-जो हड्डियो को ठण्डा कर देती है | यह घटना अब से कोई पाच सौ बरस पूर्व घटित हुई थी। ठीक-ठीक तारीख बताना तो सम्भव नही है, परन्तु ई० सन् १४७० और १५०० के बीच यह घटना घटित हुई। उन दिनों काठियावाड़ के कच्छ प्रान्त मे अनेक छोटे-बड़े राजा, भायात और गिरासिए ठाकुर थे। एक गाव का ठाकुर भी बहुत हद तक स्वतन्त्र राजा की भाति रहता था। उसकी इच्छा और वचन ही कायदा-कानून होता । प्रत्येक बात का फैसला तलवार से होता था। वे दिन ही ऐसे थे। कच्छ के अनेक राजाओ, भायातो और ठाकुरो मे दो राजा प्रमुख थे। एक लखियार वियरा के जाम भीमजी और दूसरे पत्थरगढ़ के जाम रावणसिंह । दोनो राजा रिश्ते में भाईबन्द थे। पर दोनो राज्यो की सीमाए मिली होने के कारण बात-बात में दोनो राज्यो में तलवार खिची रहा करती थी। रावणसिंह के पिता का नाम जाम लाखा था। बागड़ मे उनकी ससुराल थी। एक बार जब वे अपनी ससुराल से वापस लौट रहे थे तब राह में कुछ ठाकुरो ने पुराने बैर के कारण उन्हे वेरकर मार डाला। पिता के परलोकवासी होने पर रावणसिंह सिंहासनारूढ हुआ। उसने पिता की उत्तरक्रिया बड़ी धूमधाम से की। उस अवसर पर रावण- सिंह ने भारी यज्ञ किया। यज्ञ मे आसपास से सब राजा, ठाकुर, भायात, गिरासिए आए। परन्तु वियरा के जाम भीमजी अपने बड़प्पन और बैर-भाव के विचार से नहीं आए। रावणसिंह के मन में यह काटा चुभ गया। पर वह कूटनीतिज्ञ, कुटिल और धूर्त युवक था। अपमान के घूट को पी गया। थोड़े दिन बाद जाम भीमजी का स्वर्गवास हो गया। तब रावणसिंह बड़ी ममता से उनकी उठावनी के अवसर १०७