पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१०७

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१०८ लाल पानी पर आया । और नये तरुण जाम हम्मीर से, जो भीमजी का पुत्र था, बड़े प्रेम और अधीनता से मिला। बहुत प्रेम और आदर प्रकट किया। अन्त मे जब विदाई का समय हुआ तब स्नेहसिक्त भाषा मे उसने कहा, "हमारे और आपके पूर्वजो ने राज्य के सीमा सम्बन्धी झगड़े-टटो मे फसकर और लडकर उभय पक्ष की बहुत हानि की है, इसलिए अब मै झगड़े वाले सब स्थान स्वेच्छा से छोड़कर आपके अर्पण करता हूं। और आपसे भी विनती करता हूं कि आप आनन्द से लखियार वियरा में राज्य करें। और मुझे अपना चिर किंकर समझे। इसीमें उभय पक्ष की शोभा है।" रावणसिंह के ये वचन सुनकर तरुण हम्मीर बहुत प्रसन्न हुआ और रावणसिह को सम्मान-मान देकर विदा किया। इसके बाद भी रावणसिह ने समय-समय पर बहुमूल्य भेट-सौगात भेजकर और विनय-पत्र लिखकर जाम हम्मीर के मन मे घर कर लिया और अच्छी मैत्री स्थापित कर ली। । 1 लखियार वियरा आज भी कच्छ मे एक छोटा-सा गाव है, पर उन दिनो वह कच्छ की राजधानी थी। जाम हम्मीर ही तब कच्छ के धनी कहाते थे। और वियरा राजनगर के नाम से प्रसिद्ध था। वह एक समृद्ध नगर था। जाम हम्मीर के पाच सन्तान थी। बडा पुत्र अलैयाजी था, परन्तु उसकी माता एक खवास रबायत थी, इससे हम्मीर ने दूसरे पुत्र खगारजी को युवराज बनाया था। खगारजी रानी के पेट से पैदा थे। अलैयाजी की सगी बहन कमाबाई थी। कच्छ में उसके रूप-यौवन की बड़ी चर्चा थी। खगारजी के दो सगे भाई और थे, सायबजी और नायबजी। इस प्रकार हम्मीर के एक पुत्र और एक पुत्री रबायत से, और तीन पुत्र रानी से थे खंगारजी को युवराज-पद दिया गया, इसका भारी उत्सव वियरा मे मनाया गया। सारा नगर और राजाप्रसाद सजाया गया। लच्छ के सभी राजा, भायात, ठाकुर, गिरासिए इस अवसर वियरा मे आए । राजधानी मे बहुत धूमधाम और चहल-पहल मच गई। इस अवसर पर जाम रावणसिंह भी बहुत-सी भेट- भलाई लेकर मुबारकबादी देने आया था। परन्तु गुप्त रूप से उसने एक षड्यत्र किया कि इसी अवसर पर गुजरात के सुलतान मुहम्मद बेगड़ा को वियरा पर चढा लाया। अभी हम्मीर जाम मेहमानों की आवभगत ही मे लगा था कि उसे सूचना मिली कि गुजराज का सुलतान मुहम्मद बेगड़ा बड़ी भारी सेना लेकर