पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१११

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लाल पानी ११३ की ओर रुख करके बोले, "भाया, तेरे ही हाथ कच्छ के धनी की रक्षा का भार है,पर तू अब वियरा न जाना । सीधे अहमदाबाद सुलतान के पास जैसे बने दोनों कुमारो को ले जा।" रानी दोनो कुमारो को ले आई। सुकुमार बालकों की आखें नीद से भरी थी। छच्छर ने कहा, "बापू, जब तक दम मे दम है, चूक न होगी।" उसने कमर से फेट खोलकर राजकुमारो को अपनी पीठ पर कसा। साड़नी पर आसन जमाया और साडनी को अहमदाबाद की राह पर छोड़ दिया।

अजाजी और उनकी रानी आखो मे आसू भरे एकटक उस जाते हुए को देखते रहे । जब साडनी आखो से ओझल हो गई तब अजाजी ने सब सिपाहियों और पहरेदारो को ड्योढी से हटा दिया और बूढे सेवक हीरजी को ऊंच-नीच समझा, पौर पर बैठा, आप महल मे जा बैठे।

यह सब होते न होते जल्लाद भी घोडा दौड़ाते आ पहुचे।सब मिलाकर पच्चीस नरघाती थे। सबके आगे नगी तलवार हाथ मे लिए चामुण्डराय था। इन्हे देखकर हीरजी तलवार गोद में रख पैर फैलाकर पौर मे सो गया।

चामुण्डराय ने घोड़े से उतरकर हीरजी को ठोकर मारकर कहा, "उठ रे

बूढ़े, अभी अजाजी को हमारी अवाई की खबर कर।" परन्तु ठोकर खाकर भी हीरजी नही उठा । करवट फेरकर बड़बडाता हुआ फिर सो गया।

चामुण्डराय ने उसे पकड़कर झंझोड़ डाला। गुस्से मे भरकर कहा, "उठ हरामखोर, अभी अजाजी को खबर कर।" अब बूढे हीरजी ने आखें खोली और देखकर कहा, “क्या तुम लोग डाकू हो? ठहरो, मैं अभी सिपाहियों को हाक लगाता हू।" उसने जोर से सिपाहियों को हाक लगाई । चामुण्डराय ने अपना मुह उसके निकट ले जाकर कहा, "अरे बूढ़े, पहचानता नहीं? मैं जाम साहब का सेना-पति चामुण्डराय हूं।" बूढे हीरुजी ने आखे फाड़कर चामुण्डराय की ओर देखा,फिर हसकर कहा, “पधारो, पधारो माई-बाप ! मै तो डर गया कि धाड़ पड़ी। मजे में तो हो? बैठो-बैठो। "तू अजाजी को हमारी अवाई की खबर कर, राजकाज के लिए उनसे अभी मिलना ज़रूरी है।" "तो आप विराजो तो सही अन्नदाता ! घड़ी एक में मालिक जागते हैं, तब