तक अमल-पानी करो, मै अभी बन्दोबस्त करता हूं।"
"अमल-पानी नहीं रे ! महाराज का हुक्म है, तू अभी खबर कर।"
बूढे हीरजी ने सिर पर पाग बाधते हुए कहा, "तो अभी इत्तला करता हूं।" वह पौर मे चला गया, और चामुण्डराय अधीर होकर पौर पर टहलता रहा।
कुछ काल और बीता। तब अजाजी बाहर आए। चामुण्डराय से भुजभर भेट की और नम्रता से कहा, "इस असमय मे सेनापति का पधारना किस मतलब से हुआ?"
"मैं जाम साहब के हुक्म से आया हू।"
"मै जाम साहब का आज्ञाकारी दास हू। मेरे लिए महाराज का क्या हुक्म है?"
"हमारे महाराज के यहा वियरा के जाम हम्मीर अतिथि रूप में उपस्थित हैं। उनके दोनो राजकुमार आपके यहा है, उन्हे महाराज ने बुलाया है। आप उन्हे अभी हमारे हवाले कीजिए।"
"बड़े आनन्द की बात है। दोनो कुमार सो रहे है। आप रातोंरात चलकर आ रहे हैं। घोड़े भी थक गए है। कमर खोलिए। अमल-पानी कीजिए, रूखा-सूखा जो कुछ है स्वीकार कीजिए, तब तक कुमार भी जग जाएगे।" अजाजी ने अधीनता दिखाते हुए कहा।
चामुण्डराय यह जानकर कि शिकार कब्जे मे है, कुछ आश्वस्त हुआ। पर उसने कहा, "ठहर नही सकता अजाजी,महाराजाधिराज का हुक्म है कि कुवर साहबान को लेकर तुरन्त पीछे आओ। सो आप अभी दोनों कुमारो को ले आइए।"
"तो जैसी राजाज्ञा, मैं अभी राजकुमारो को भेजता हू।" यह कहकर अजाजी महलों में चले गए।
परन्तु बहुत समय बीत जाने पर भी राजकुमार नही आए। न कोई दास-दासी ही पौर पर आया। पूर्व मे सफेदी फैली, सूर्योदय हुआ। चामुण्डराय ने जोर से चिल्लाना और पुकारना आरम्भ किया।
हीरजी ने आकर हसते हुए कहा,"अन्नदाता से हमारे स्वामी की भेंट हुई न?"
"पर अजाजी कहां है?"
"दांतुन-कुल्ला कर रहे हैं, माई-बाप।"