पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/११३

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बाल पानी "अरे, उन्हे अभी यहां बुला ला।" चामुण्डराय ने अधीर होकर क्रोधित स्वर मे कहा। "अभी लाया माई-बाप," कहकर हीरजी फिर पौर मे घुस गया। थोड़ी देर में दातुन हाथ मे लिए अजाजी बाहर आए। उन्होने आश्चर्य की मुद्रा में कहा, "अरे, राजकुवर अभी नही आए ? बड़ी खराब बात है । मैं तो राजकुमारों को जगाकर और बाहर भेजने को कहकर कुल्लादांतुन मे लग गया।" फिर उन्होने हीरजी की ओर मुख करके कहा, "जा, जा, रानी-महल में जाकर दोनो कुवारों को ले आ।" हीरजी भीतर चला गया। अजाजी वही बैठकर चामुण्डराय से गप्पें लड़ाने लगे। सूरज ऊपर उठ आया, धूप फैल गई। चामुण्डराय ने कहा, "बड़ी देर हो रही है, अजाजी!" इसी समय हीरजी ने आकर कहा, "राजकुमार तो बहुत देर हुई, रानी-महल से आ गए!" "अरे, तो वे है कहा ? तुम सब हरामखोर हो। रानीजी से पूछ कि राजकुमार कहां हैं, यहा तो अभी आए नहीं।" हीरजी फिर भीतर चला गया। और कुछ देर बाद आकर उसने कहा, "सरकार, रानीजी पूजा में हैं।" अब अजाजी गुस्से मे बकते-झकते और यह कहते कि मैं देखता हूं, फिर महल मे घुस गए। आधा घंटा बीत गया। चामुण्डराय का रूप उग्र होने लगा। वह जोर-जोर से बकने लगा। इसी समय अजाजी ने आकर कहा, "बड़ी विचित्र बात है। राजकुमार महलो में नही हैं । उनके साथ वह दासी भी गायब है, जो उन्हे ला रही थी। पर वे गए कहां?" चामुण्डराय ने अब अपना असली रूप प्रकट किया। उसने ललकारकर कहा, "सिपाहियो, महल को घेर लो।" और अजाजी से कहा, "अजाजी, मैं महलों की तलाशी लूगा। आपराज-विद्रोह कर रहे हैं। सीधी तरह राजकुमारों को मेरे हवाले कर दीजिए, नही तो अच्छा न होगा। महाराज रावणसिंह महल को ढहाकर उसपर गधो से हल जुतवा देंगे।" अजाजी ने कहा, "सेनापति, तुम सेनापति होने पर भी राज्य के चाकर हो, और हम भायात है। ऐसी बात करके तुम हमारा अपमान करते हो, इसका नतीजा