पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/११८

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१२० लाल पानी इस दास का सिर काट लीजिए और मेरे सब बाल-बच्चों को भी तलवार के घाट उतार दीजिए, जिससे हमे भूखो न मरना पड़े। परन्तु इससे पहले आप सब भिया- नाओ को कच्छ से बाहर निकाल दीजिए। इसीमे आपका भला है, क्योकि आज का यह जुल्म दुनिया की आखो से छिपा न रहेगा। और जब मेरे जात-भाई यह सुनेगे तब वे बलवा करेंगे, और आप जानते है कि उस बलवे को दबाने की ताकत आपकी सेना मे नही है। यह विचार लीजिए। यह मेरी प्रार्थना है।" पटेल की अभय मुद्रा और शान्त वाणी सुनकर रावणसिह विचार मे पड़ गया। उसने कहा, "बुड्ढे, तेरी कोई सन्तान है ?" बूढे पटेल ने कहा, "अन्नदाता, मेरे आठ पुत्र है।" "तो उन सबको यहा बुला।" रावण ने आज्ञा दी । पटेल के आठों पुत्र हाथ बांधे राजा के सामने आ खड़े हुए। राजा ने खटाक से म्यान से तलवार निकालकर पटेल के सबसे बड़े पुत्र की गरदन पर भरपूर वार किया। लडके का सिर धड से जुदा होकर धूल मे लोटने लगा। पुत्र का इस प्रकार अकल्पित रूप से घात होता देख पटेल की आखो के आसू सूख गए और उसकी आंखो मे वही चमक आ गई। वह पर्वत की भाति अचल खडा रहा। राजा ने उसे लक्ष्य करके कहा, "यह है राजद्रोह का दण्ड । अभी समय है। तूने अवश्य घास की इन गजियो में राजकुमारों को छिपा रखा है। भलाई इसीमे है कि उन्हे निकालकर मुझे सौप दे और अपने परिवार को विनाश से बचा ले।" पटेल ने धीर-गम्भीर स्वर में कहा, "महाराज, यदि मेरे परिवार के भाग्य में इसी रीति से नष्ट होना बदा है तो मैं आपको दोष नही दूगा । राजपुत्र मेरे पास नहीं हैं।" क्रोध में उबलकर रावणसिह ने भिया के दूसरे पुत्र का सिर धड़ से उड़ा दिया। पटेल की पुत्र-वधुए हाहाकार कर उठी और खूनी हत्यारे सिपाही भी भय से थर्रा उठे। पर राज्य-लोभान्ध रावणसिंह का कठोर हृदय न पसीजा। उसने पटेल को लक्ष्य कर कहा, "अब भी राजकुमारों को देगा कि नही ?" • पटेल ने आंखों से आग बरसाते हुए करारा जवाब दिया, "अरे राजा, जो तू मुझे अपना अपराधी मानता है तो मुझे मार डाल। निरपराध बालकों की हत्या से क्यो अपने कुल को कलंकित करता है।"