पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/११७

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लाल पानी आकाश को लाल कर दिया । जलते-झुलसते-तडपते स्त्री, बालक, वृद्ध और बेचारे जानवरों की आर्त पुकार से प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया। गांव के सारे स्त्री, पुरुष, पशु आर्तनाद करते-करते जल मरे। परन्तु भिया के मुखमंडल पर किसी प्रकार का शोक, उद्वेग या मलिनता न थी। उसके नेत्रो में एक दिव्य चमक आ रही थी। वह अचल पर्वत की भाति खड़ा था। देखते ही देखते उसके सगे-सम्बन्धी जलकर खाक हो गए। पटेल की यह दृढ मुद्रा देखकर चामुण्डराय भी विचलित हो गया। उसने सोचा, गाव मे राजकुमार नही थे, परन्तु अब उन्हें कहां ढूंढा जाए। इसी समय चामुण्डराय ने धूल का बादल उड़ता देखा। और कुछ ही क्षण मे एक घुड़सवार सेना साथ लिए स्वयं जाम रावणसिह वहा आ उपस्थित हुआ। सेना के सिपाहियों ने चारो ओर से पटेल की मडैया को घेर लिया। घोड़ों ने खेत रोद डाले, सिपा- हियो ने पशु खोल दिए, चीज़े नष्ट-भ्रष्ट कर दी। परन्तु भिया पटेल उसी भाति अटल-अचल खड़ा रहा। वैसी ही उसकी मुख-मुद्रा, वैसी ही आखो की चमक । भय-शंका से पाक-साफ । चामुण्डराय ने सब हकीकत रावण को समझा दी। सब बात सुन-समझकर रावण की गृद्ध दृष्टि उन घास की गजियो पर पड़ी। उसने आज्ञा दी, "जैसे यह राज-विद्रोही गाव आग की भेंट हुआ है, उसी प्रकार एक-एक करके घास की इन गजियो मे भी आग लगा दो और इस कुएं और बावली को पत्थरो से पाट दो।" सैनिक राजाज्ञा पालन करने आगे बढे। परन्तु इसी क्षण पटेल ने ललकार- कर कहा, "ठहरो!" और वह आगे बढकर जाम रावण के सम्मुख आया और राजा को प्रणाम कर कहा, "महाराजाधिराज, राजाज्ञा हुई सो ठीक, पर राजाज्ञा पालन करने से प्रथम मेरी प्रार्थना सुन ली जाए। आप श्री हाल ही में कच्छ के स्वामी बने हैं, अत: आपको आरम्भ में ही रैयत की हाय लेना शुभ नही होगा। आगे जैसी महाराज की मरजी। आपके अधिकारी ने बिना अपराध हमारा गाव जला- कर खाक कर डाला। बूढ़ो और बच्चों पर भी दया नहीं की। अब यहां मेरा इतना-सा परिवार बच रहा है। सो आप कुआ-बावली पत्थर से पाटकर हमारा पीने का पानी नष्ट करना चाहते हैं। हमारी घास की गजियो में आग लगाकर हमारे पशुओं को भूखों मारना चाहते है। सो आप खुशी से कीजिए। परन्तु इससे पहले