पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१४१

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रूठी रानी १४३ करूगी? चिता की तैयारी करो।" . चिता तैयार हुई, बाजे बजे, चन्दन, कपूर, अगर से चिता सजाई गई, दूर-दूर से लोग रूठी रानी को सती होते देखने आए। रूठी रानी घोड़े पर चढकर मुहर और रत्न लुटाती, गहने बखेरती बाज़ार से निकल, चिता मे आ बैठी, गोद मे पति की पगड़ी थी, आग देनेवाला गांव में कोई न था। "देखो, यहा कोई राठौर है ?" एक बूढा जेत मालोत कांपता हुआ हाथ जोडे आया । "सती माता, मुझपर दया करो, मै भूखा मरता मारवाड़ छोड़ यहा पेट पालता हू।" "डरो मत ठाकरा, स्नान करके चिता मे आग दे दो, तुम राठौर हो इसीसे तुम्हे बुलाया है।" "सती माता, आग तो मैं दे दूगा, पर जाजम डालकर बारह दिन मे कहा बैठूगा ! मेरा तो घर भी इतना बड़ा नहीं कि जोधपुर की रानी को दाह करके शोक की जाजम बिछाकर बैठू।" "मुन्शी हाजिर है ?" "हुक्म अन्नदाता, सती माता।" "अभी रानाजी को हमारी ओर से चिट्ठी लिख दो कि इस केलोह गाव का और दस हजार की पैदा का इस ठाकुर के नाम पुश्त-दर-पुश्त का पट्टा कर दें।" "जो आज्ञा माता।" स्नान करके ठाकुर ने चिता मे आग दे दी। इस प्रकार रूठी रानी ब्याह के सत्ताईस वर्ष बाद इस भाति सती होकर अमर हुई।"