पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२०७

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कन्यादान २११ चिट्ठी लिखते हो, इससे तुम्हें शर्म नही आती, जबकि तुम्हारे पिताजी इस काम के लिए उपस्थित है ? क्यों जी, भला शर्म किस बात की आनी चाहिए? अग्रेजी पढा-लिखा जवान भी अपने जीवन-भर के मुख्य विषय पर न सोचे? पर कहू किससे ? वे ठहरे आर्य- समाज के मन्त्री। उन्होने साफ लिख दिया, इस विषय मे हमे पत्र न देना। उधर कन्या को लिख दिया, तुम परीक्षा देकर छुट्टी होते ही फौरन जालन्धर कन्या-महाविद्यालय मे चली जाओ। वहां के लाला देवराज को मैंने लिख दिया है। वे पुत्री की भांति तुमको घर में रखेंगे। कन्या चली गई। युवक देखता रह गया। वह सोचता था, यह कैसा सुधार कैसी शिक्षा ? कैसा नया जीवन ? हृदय में ज्ञान, तेज और स्वाधीनता का दीपक तो जला दिया, मगर इससे काम नहीं लिया जा सकता। खास कर ऐसे प्रश्न का तो विचार नही किया जा सकता। विवाह करेंगे माता-पिता। अच्छी बात है, ये आपापंथी बूढ़े अपना आपस में ब्याह करें, मैं कदापि अपनी इच्छा के विरुद्ध न करूंगा। in 1 आर्यसमाज, आगरा भी कोई साधारण मार्गसमाज नहीं, और इसीलिए वहा के आर्यसमाज के प्रधान भी ऐरे-गैरे नही। उनका नाम बताने मे तो कुछ सार है नही, इतना कह देते हैं कि ठेकेदार थे। पजाब से भुखो मरते आए थे। यहां ईश्वर ने दोनो हाथों से उन्हे ढाप लिया। घोडागाड़ी, मकान, जायदाद सभी हो चुके। नही हुए तो पुत्र । अलबत्ता, कन्या हुईं तीन । एक-दो-तीन । अच्छा पाठक महोदय, आप आर्यसमाज के प्रधानों को क्या समझते हैं ? जरा बताइए तो । उचित है कि आप उन्हे इज़्ज़तदार और प्रतिष्ठित पुरुष समझ, यह भी उचित है कि आप उन्हें देखते ही 'नमस्ते प्रधान जी' एकबारगी ही कह उठे, और उनके तनिक से सिर हिला देने पर सन्तुष्ट हो जाएं। देखिए, वे है प्रधान, ठेकेदार, धनी । ऐसे आदमी न जाने कब काम आ जाएं। अस्तु । अब काम की बाते सुनिए। प्रधान जी को भी समय पर कन्या से विवाह की हाजत हुई। आपने सभी प्रमुख आर्यसमाजी अखबारों मे उसके विवाह का विज्ञापन छपवा दिया। विज्ञापन में कन्या की आयु लिखी, रूप लिखा, गुण लिखे, वह स्वयंवरा होगी, यह भी लिखा, और उसके पिता आर्यसमाज के प्रधान हैं, यह