पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२२१

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२२६ कन्यादान कांग्रेस कमेटी के भी प्रधान है । आज उनकी गिरफ्तारी की भी जोरो की अफवाह है। बहुत दिन बाद आज डाक्टर साहब भी सभा देखने आए है। भीड बीस-पचीस हजार से कम नही। सभा समाप्त हो गई । स्त्री-पुरुष उठ-उठकर तितर-बितर हो गए। डाक्टर साहब धीरे-धीरे जा रहे थे। एक कोमल कण्ठ ने पुकारा-डाक्टर साहब ! डाक्टर साहब ने लौटकर देखा, बिजली का कुछ प्रकाश वहां था। आगन्तुक स्त्री थी, उसकी उगली एक बच्ची पकडे थी। पहले उन्होने पहचाना नही, पर फिर पहचाना, कान्ता है । वे मन के आवेग को रोककर बोले-ओह | आप ! कान्ता पास आकर खड़ी हो गई। बालिका से कहा-डाक्टर साहब को नमस्ते करोबेटी। बालिका ने नमस्ते किया। डाक्टर साहब ने बच्ची को गोद में उठाकर पूछा-तुम्हारा नाम क्या है बेटी? "सुशीला।" "वाह ! सचमुच सुशीला हो।" बालिका ने स्थिर नेत्रो से डाक्टर को देखकर कहा-आपका नाम क्या है ? डाक्टर विचलित हुए। सभलकर बोले-हमारा नाम डाक्टर साहब । "आप हमारे घर नहीं आते ?" "तुम बुलाओ तभी तो आएं।" "अच्छा आना।" "क्या दोगी?" "पूरी और मिठाई।" "बहुत अच्छा, आएगे।" कान्ता चुप खड़ी थी। अब उसने कहा-डाक्टर साहब ! डाक्टर साहब चौके। कान्ता को देखने लगे। कान्ता ने कहा-डाक्टर साहब ! अब भी आप कभी रोते है ? डाक्टर साहब की छाती मे एक घूसा लगा। उन्होने जोर से बच्ची को छाती से लगा लिया, वह कान्ता की तरफ देख भी नही सके । कान्ता ने फिर कहा-डाक्टर साहब ! अब उतना भय नही है, सकोच भी