पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२४७

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२५२ विधवाश्रम चारो तरफ शोर मच गया-बैठा दो, निकाल दो, चुप कर दो।-उक्त महाशय गुस्से से आग-बबूला होकर उठकर बाहर चले गए। सेक्रेटरी महाशय फिर रिपोर्ट पढने लगे। इसपर एक और आदमी उठकर कुछ कहने लगा। सभापति ने कड़ककर कहा-महाशय ! इस भाति बारम्बार बेहूदे ढग से सभा के काम मे विघ्न करना अनुचित है । मैं उपस्थित भाइयो से पूछता हू : क्या आप इस बात को पसन्द करते है ? चारो तरफ 'नही-नहीं' का शोर मच गया और वह आदमी भी उठ गया। इसके बाद आश्रम के कार्यो के कुछ उदाहरण सुनाए गए : रजवंती एक तेलिन थी। उसकी उम्र बाईस वर्ष की थी। उसका पति उसे अच्छी तरह नहीं रखता था । उसे आश्रम में आश्रय दिया गया, और सरकार से लिखा-पढी करके पति से उसे बेदखल कर दिया गया। फिर उसका विवाह एक अच्छे युवक से कर दिया गया। उसने २००) आश्रम को दिए । एक मुसलमान स्त्री अजीमन स्टेशन पर कही जा रही थी। उसकी गोद में एक बालक भी था। उसे हमारे उत्साही कार्यकर्ता गजपति जी आश्रम मे ले आए. और समझा-बुझाकर, उसे शुद्ध कर उसका विवाह एक युवक से कर दिया। उसके पति ने मुकदमा चलाया, पर जीत हमारी हा हुई। गुलाबो वैश्य-कन्या थी । उसका पति कमाऊ न था । उसे खाने-पीने का कष्ट था। उसने हमारे परम श्रद्धास्पद डाक्टर साहब को पत्र लिखा कि मुझे कहीं ठिकाना करवा दो। बस, उसे वहा से किसी तरकीब से मगवा लिया गया और उसका विवाह उसकी पसन्द के आदमी से कर दिया। राजो नामी एक तेईस वर्ष की स्त्री थी। वह व्यभिचारिणी हो गई थी। उसे कोई उपदेशक फुसला लाया था। कुछ दिन वह उसके घर मे रही। पीछे न जाने कैसे उसे शराब पीने की आदत पड गई। वह वहां से भाग आई और आश्रम में पहुचाई गई। यहां हमारे आदरणीय डावटर साहब ने उसे एकान्त में बहुत कुछ धर्मोपदेश दिया और उसे सुशिक्षा दी। पर वह दुष्टा डाक्टर साहब के ऊपर ही कुकर्म का दोषारोपण करने लगी। इसके बाद वह स्थिर हुई और उसका ब्याह एक. योग्य पुरुष के साथ कर दिया गया। उसने उसके साथ असआचरण किया, तो वह फिर आश्रम मे आ गई। आश्रम की तरफ से उस पुरुष पर मुकदमा चला दिया