पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२४८

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विधवाश्रम २५३ गया। उसने एक हजार रुपये देकर डरकर सुलह कर ली। आधा उसमे से आश्रम को दिया गया। अब फिर उस स्त्री का विवाह किया जाएगा। इन उदाहरणो को सुनकर सभा मे हलचल मच गई, और लोग बारम्बार धन्यवाद देने लगे । सभापति की प्रशसाओं के पुल बंध गए; और सस्था की सदुप- योगिता की भूरि-भूरि प्रशसा की गई। इसके बाद ही चन्दे की वर्षा शुरू हुई और मेज पर रुपयो और नोटों का ढेर लग गया। दो आदमी चुपचाप बाते करते सडक से जा रहे थे। सन्ध्या का समय था। एक ने कहा-बस, ठहर जाओ। यही वह घर है। वह खिड़की देखते हो, वही है वह। "वह तो बन्द है।" "अवश्य वह खोलेगी, मै तीन दिन से देखता हू । वह बार-बार इशारा करती "यार, क्यो बेपर की उड़ाते हो? ऐसे खूबसूरत भी नही हो, जो कोई औरत तुमपर मरे; फिर वह महलों मे रहनेवाली।" इतने मे खिड़की खुली और एक औरत उसमे दीख पड़ी। उस आदमी ने मित्र की बात खतम होते ही कहा-देखो, वह देखो। दोनो ने देखा-वह कुछ सकेत कर रही थी। अब कुछ देर उधर देख, एक बगल खड़े होकर उनमें से एक ने संकेत किया। सकेत का उत्तर सकेत मे दिया गया। अब दोनो को सन्देह नही रहा । परन्तु एक ने कहा-भाई देखो, यह मामला कुछ और ही ढग का मालूम देता है, प्रेम का नहीं। वरना वह औरत दो आदमियो को सकेत न करती। यह कहकर उसने फिर उस स्त्री को सकेत किया। स्त्री का सकेत पाकर उसने कहा-ठहरो, सब ठीक हुआ जाता है। अभी हमे एक पुलिस कान्स्टेबिल बुलाना पड़ेगा। वह लपककर एक कान्स्टेबिल को बुला लाया। कान्स्टेबिल ने खिड़की की तरफ देखा, वह स्त्री वही खडी थी और सकेत कर रही थी। उसने कहा-ज़रूर यह औरत बदमाशों के अड्डे मे कैद है। ठहरो, पहले यह देखना है कि यह मकान है,किसका। कान्स्टेबिल ने तुरन्त ही पता लगा लिया और उन आदमियो से कहा--तुम लोग यही रहो, मै थाने से मदद लेकर आता हूं, मकान पर धावा बोलना पड़ेगा।