पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रबुद्ध ४५ "अच्छा-अच्छा, महानायक प्रबुद्धसेन और महामात्य विजयादित्य को यहा भेज दो।" प्रतिहार ने नतमस्तक हो प्रस्थान किया। महाराज ने चंवरवाहिनी को सकेत से निकट बुलाकर कहा-जा, राजमहिषी से कह दे कि आज ही तो भाण्ड- वितरण का दिन है, सभी राजकुमारिया आ गई होगी। वे स्वय उनकी शुश्रूषा करें। ऐसा न हो कि किसीको खिन्न होने का अवसर मिले। महानायक प्रबुद्धसेन ने अलिन्द में आ स्थिर भाव से सम्मुख खड़े होकर और खड्ग को उष्णीष से लगाकर पुकारा-परम परमेश्वर, परम वैष्णव" महाराज ने बीच मे ही हसकर कहा-महानायक, आज सभी सेना सज्जित करनी चाहिए। ज्योंही कुमार सिद्धार्थ अन्तिम भाण्ड-वितरण करें, त्योही जयवोष और सैनिक अभिवादन होना चाहिए। आज ही कुमार सिद्धार्थ सैना को पताका प्रदान करेगे। महानायक ने नतमस्तक होकर कहा-महाराज की जय हो। समस्त सेना सज्जित होकर भट्टारकपादीय महाराजकुमार के अन्तिम भाण्ड-वितरण की प्रतीक्षा कर रही है। महामात्य विजयादित्य ने आ, नतजानु होकर महाराज का अभिवादन किया। महाराज ने प्रफुल्लवदन होकर कहा-महामात्य ! अब तो समय उपस्थित है, फिर विलम्ब क्यो ? सभी राजकुमारिया आ तो गईं ? तुम कुमार सिद्धार्थ को तृतीय अलिन्द में ले जाओ, वही भाण्ड-वितरण किया जाएगा। हा, तुम कुमार के सर्वथा निकट रहना और उनकी गतिविधि का सूक्ष्म निरीक्षण करते रहना । नेत्रो का तारतम्य और ओष्ठ-प्रस्फुरण गूढ़ मनोगत भावो को प्रदर्शित कर देगा । ज्योही तुम देखो, कुमार किसी कन्या के प्रति आकर्षित हुए है, त्यो- ही तुम शख-ध्वनि करना, और पुरोहित को शुभसवाद देकर मेरे निकट भेज देना। -इतना कहकर महाराज हूंस दिए। वृद्ध महामात्य भी हसे । उन्होंने कहा-जो आज्ञा, परन्तु कोली राजकन्या यशोधरा अभी तक नहीं आई है। वह बीच में ही एक दण्डधर ने उपस्थित हो, उच्च स्वर से जयनाद करके कहा- कोली राजकन्या भट्टारकपादीय महाराजकुमार से भाण्ड-प्रसाद पाने की अभि- लाषा से आई है। वे द्वार पर उपस्थित हैं। -