बर्मा रोड आकर विकट परिस्थिति देख उनके भी छक्के छूट गए । जापानी बमबाजो ने सड़क के धुएँ उडा दिए थे । वे चील की भाति सड़क पर मंडराते और फडाफड़ बम गिराते रहते थे । इन बमों से जो गढे सड़क में हो गए थे-वे गढ़े न थे, कुए थे। बड़े से बड़ा साहसिक सैनिक भी उधर कदम रखना मौत के मुह में जाना समझता था। कोई भी ठेकेदार इस काम मे सहायता करने को तैयार न था । पहाड़ी असभ्य नागा लोगो की मार शत्रुओं से भी विकट थी। वे अवसर पाते ही मानो धरती फोड़कर निकल आते और खाने-पीने का तथा अन्य सब सामान लूटपाट जैसे धरती ही मे समा जाते थे। ? जनरल वुड बड़े जीवट के आदमी थे । मिस्र और एलेग्जेण्ड्रिया के मोर्चों पर इन्होने बड़ी-बड़ी विजय प्राप्त की थी। कठिन से कठिन परिस्थिति मे भी वे घब- राने वाले न थे। बर्मा फ्रण्ट पर आते ही उन्होने परिस्थिति का ठीक-ठीक अध्ययन किया। एक दिन वे घूमते हुए सन्ध्या समय आसाम के पुलिस कमिश्नर सर वाल्टर के बगले पर जा धमके। प्रधान सेनापति को इस प्रकार एकाएक अपने घर आया देख पुलिस कमिश्नर अवाक् रह गए। उन्होने साधारण शिष्टाचार के बाद उनसे कहा-कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हू जनरल वुड ने कहा-आपको तकलीफ देने ही मैं आया हू । मैंने सुना है, इस इलाके के डाकू बड़े जबर्दस्त हैं; उनसे बड़े-बड़े अफसर थर्राते है-वे बड़े जीवट के पुरुष होते हैं। "ओह, उनका क्या ! वे पहाड के चूहे है, न जाने कहां से धरती फोड़कर निकला आते है और फिर एकाएक वहीं समा जाते हैं । जितनी पुलिस-सेना उन्हे पकड़ने भेजी गई, लौटकर नही आई।" "क्या आप बता सकते है कि इन डाकुओ का सरगना कौन है ?" "क्यो नहीं ? उसका नाम जंगबहादुर है । वह चालीस साल का अधेड़ आदमी है। पर उसकी एक-एक नस लोहे की बनी है। उसके सिर का मोल चालीस हजार रुपया है।" "क्या उसके खिलाफ कोई संगीन जुर्म है ?" "एक जुर्म है ? खून, डाके, कत्ल के दर्जनों मुकदमे उसके विरुद्ध हैं। उसके हजारों साथी सारे पार्वत्य प्रदेश मे फैले हुए हैं। कोई सरकारी रसद, खजाना
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