पृष्ठ:बा और बापू.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'बा' जबदस्ती पढाना चाहते थे, पर वे दिन मे तो बडे-बूढो के सामने 'बा' की ओर देख भीन सकते थे।'बा' घूघट निकालकर बापू के सामने आ पाती पी। रात को एकान्त मे उहोंने 'बा' को 'बा' बापू से छ महीने बडी थी । उन दिनो काठियावाठ में लडकियो को कोई पढाता-लिखाता न था। इसलिए 'बा' बचपन में बिलकुल अपढ थी।पर घर के कामकाज मे बडी सुघड थी। पिता के सस्कारी वैष्णव परिवार के उत्तम गुण उन्हे विरासत में मिले ये। जब 'बा' के साथ बापू की सगाई हुई, तब 'बा' सात साल की थी और बापू साढे छ साल के बालक थे। तेरह साल की उम्र मे 'बा' का ब्याह हो गया । ब्याह का बापू को कुछ भी ज्ञान न था-न उनसे कुछ पूछा गया था । केवल धूमधाम से उहें पता चला कि ब्याह होने वाला है । वे बहुत खुश थे। खुशी का कारण यह था कि अच्छे-अच्छे कपडे पहनने को मिलेंगे, बाजे बजेंगे, जुलूस निकलेंगे, बढिया खाना और मिठाई मिलेगी, एक नई लडकी के साथ हसी खेल करेंगे । व्याह के बाद कुछ दिन तो दोनो एक दूसरे से कुछ डरते और शर्माते से रहे । फिर धीरे-धीरे एक-दूसरे को पहचानने लगे, बोलने लगे । 'वा' अपढ थी, स्वभाव की सीधी थी, पर तबीयत की आजाद । मेहनती खूब थी। बापू से बहुत कम बोलती थी। उन्हे अपने अपढ होने का कुछ विचार ही न था। बापू उन्हे पढाना चाहते थे, पर वो काम पढने मेन लगता था। बापू उहें