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बापू १ सामर्थ्य आई। एडवर्ड टामसन लिखता है "भारतवर्ष इतना बिखरा हुआ-दरारो से पूर्ण, टुकडे-टुकडे हुमा और चिप्पिया लगा हुआ देश था, जितना इस धरती पर और कोई राष्ट्र न था । बुद्ध के बाद पहली बार उसे ऐसी हलचल का ज्ञान हुआ, जो उसके कोने-कोने मे फैल गई, ऐसे श्वास और स्वर का पता लगा जिसको सब जगह अनुभव किया गया और सुना गया। यद्यपि उसके शब्द हर बार समझ में नहीं आए। राष्ट्रीय आन्दोलन में अधिक अच्छे वक्ता तथा अधिक विद्वान् लोग हुए हैं, परन्तु ऐसा आदमी एक ही है, जिसने भारत के नर- नारियो के हृदय मे यह बात जगा दी कि उसका तथा उनका रक्त-मास एक ही है। उसने ऐसी भावनाओ तथा आशाओ को जगाया, जो किसी भी राजनीतिक दल-बदी से अधिक व्यापक थी। उसने आने वाली पीढी के लिए भारतवासियो के मार्ग की दिशा ही बदल दी है।"