पृष्ठ:बा और बापू.djvu/२७

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खादी धारण बापू ने जब रोलट-ऐक्ट के विरुद्ध छेडे गए सत्याग्रह-सग्राम को रोक दिया तब 'स्वदेशी' के काम को पूरी लगन से उठाया। उस समय के स्वदेशी व्रत मे कुछ महीनो तक तो मिल के कपडों को भी स्वीकार किया गया था, परन्तु थोडे ही दिन बाद बापू ने देख लिया कि मिल के कपडे का प्रचारक बनने की जरूरत नहीं है । आवश्यकता तो इस बात की है कि परदेश से आने वाले कपडे की रोक के लिए अधिक कपडा तैयार किया जाए और यह काम चर्खे से अच्छी तरह हो सकता है । इसलिए बापू ने सबसे आग्रह किया कि वे चर्खा पलाए और खादी पहनें। परन्तु पहले पहल बडे पने की खादी नहीं बुन सकी। सैतीस इच पने की खादी भी कठिनाई से बुनी जाती थी। तब तो धोती या साडी खादी की पहननी हो तो छ या सात नम्बर के असमान सूत की और कम पने की ऐसी खादी को जोडकर ही पहनी जा सकती थी। परतु इस तरह जोड़कर बनाई गई साडो का वज़न सेर-सेढ सेर तो होता ही था। बापू के हुक्म से ऐसी वज़नी और मोटी साडिया जब आश्रमकी वहिनो को पहननी नडी तब उन्होने कहा, "ये तो बहुत भारी पडती हैं। हमसे उठाए उठती भी नही।" तो बापू में बहिनो को हसकर कहा, "क्यो नही, नौ-नौ महीने तक बच्चे को पेट में धारण करने वाली बहिनो को देश की खातिर, अपनी गरीष बहिनो की मावरू की खातिर, यह इतनी-सी साडी