पृष्ठ:बा और बापू.djvu/२८

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लशि भारी क्यों लगनी चाहिए?" बापू की इस दलील पर आश्रम की वहितो ने साडी के पड़ने की बात तो फिर न कही, पर वे ऐसी भारी भारी मोर्टी साडियो को रोज़-रोज धोने की कठिनाई की ज़ोर-जोर से बापू के सामने शिकायत करने लगी। तो भी वाप हसकर जवाब देते "हम तुम्हारी साडिया धो देंगे।" इस तरह हसी-विनोद में कठिनाइया सरल होती रही। आश्रम की बहिनों की ओर से 'बा' अगुआ बनकर उलाहना देती। बापू बहुधा आश्रम की बहिनो से कहते,"'या'को बूट मोजा पहनामे मे मुझ उसकी बहुत खुशामद करनी पड़ती थी, फिर उनको छडाने मे भी कुछ न कुछ खुशामद करनी पडती, पर खादी की साडी पहनने मे उससे अधिक खुशा- मद करनी पडेगी।" आश्रम मे सबसे पहले सरलादेवी चौधरानी ने खादी की साडी पहनी, उसके बाद 'बा' ने और फिर आश्रम की सब महिलाओ ने । पीछे तो बडे पने की खादी भी बुनी जाने लगी। और खुद कातनेवालो के लिए तो साडी की कोई दिक्कत ही न रह गई। 'वा'तो फिर अपने जीवन मे खादी मे ऐसी लिप्त हुई कि एक बार उनके पैर की छोटी उगली मे खून निक्ला। 'बा' खादी की पट्टी बाधने जा रही थी, इतने में एक बहिन ने महीन कपडे की पट्टी ला दी और कहा, "इस महीन कपडे से रगड नहीं लगेगी, और पट्टी अच्छी तरह बधेगी।" परन्तु 'बा' नेतुरन्तकहा, "मुझे खादी की पट्टी ही चाहिए, वह खुरदरी भी होगी तो मुझे नहीं चुभेगी।" उन्होने खादी की ही पट्टी बाधी। जब बापू ने 'आगाखा महल' मे उपवास आरम्भ किया, तब 'बा' उनसे मिलने पहा आई । जाने के समय आश्रम की बहिनों को उहोने आश्रम मे पडे अपने सब कपडे वाट दिए। परन्तु भाग्रहपूर्वक यह आदेश दिया कि बापू के अपने हाथ से कती और मेरे लिए खास तौर पर तैयार की गई साडी तो मुझे जेल