पृष्ठ:बा और बापू.djvu/३४

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हरिजन भाई बापू ने जब अहमदाबाद में आश्रम की स्थापना की थी, तब आपने अपने साथियो से कह दिया था कि 'यदि कोई लायक छूत यहां आश्रम मे भरती होना चाहेगा तो मैं उसे अवश्य भरती कर अत आश्रम की स्थापना के थोडे ही दिन बाद ठक्कर बापा ने आश्रम के नियमों का पालन करने वाले एक अछूत परिवार को आश्रम मे भरती करने की सिफारिश की । बापू तो यह चाहते थे। बस, दूधा भाई, उनकी पत्नी दानी बहिन और दुधमुही बच्ची लक्ष्मी आश्रम मे आ पहुचे। आश्रम मे वडी खलबली मची। अछूतो को छूने तक को तो सब तयार थे, पर उनको रसोईघर मे और परिवार मे एकमएक करते समय पुराने वैष्णवी हिन्दू सस्कार वाधक थे । प्याले को मुह से लगाकर पानी पीने के बाद उसे माजना ही चाहिए। यदि बिना माजे वह पनियारे पर रख दिया जाए तो 'बा' यह देख भी नही सक्ती थी । थाली में कुछ भी परोसते समय परोसने की करछुल या चम्मच भोजन को थाली से तनिक भी छू जाती तो वह करछुल जूठी मान ली जाती थी और उसे अलग मलने के बतनो मे रख देना होता था। बेचारे द्धा भाई और दानी बहिन इस तरह की पूरी खवरदारी रखने को पूरी चेष्टा करने पर भी चुक जाते थे।