पृष्ठ:बा और बापू.djvu/४८

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नौ अगस्त 47 ?" सुशीला, यह दुनिया तो ऐसे चल रही है जैसे कुछ हुआ ही न हो। बापू को स्वराज्य कैसे मिलेगा?" सुशीला ने कहा, " 'बा' ईश्वर बापू की मदद पर हैं न " उन्हे पहले दर्जे के एक छोटे-से डिब्बे मे बैठाया गया और गाडी पूना की ओर रवाना हुई। सुबह सात बजे एक छोटे-से स्टेशन पर गाडी खडी करके उन्हें उतारा गया और मोटर द्वारा आगा खा महल मे पहुचा दिया गया। पहरेदारो ने बडा फाटक खोला । कुछ दूर जाने पर तार का एक दूसरा दरवाजा खुला, मोटर पोर्च मे जा खडी हुई । 'बा' सुशीला बहिन का सहारा लेकर धीरे-धीरे सीढिया चढी । बरामदे मे कुछ केदो झाड़ लगा रहे थे । 'बा' ने उनसे पूछा, "बापू का कमरा कौन-सा है किसी ने जवाब दिया, "आखिर का।" 'बा' सुशीला वहिन का सहारा लेकर धीरे-धीरे चलती हुई बापू के कमरे मे पहुची । बापू एक ऊची गद्दी पर बैठे हाथ में कुछ कागज लिए ध्यानपूर्वक कोई लेख सुधार रहे थे । कुछ बात- चौत भी हो रही थी। महादेव भाई कन्धे के पीछे खडे होकर उन कागजो को देख रहे थे । महादेव भाई 'बा' को देखते ही खुश हो गए। परन्तु बापू की त्योरिया चढ गई, उन्हे सन्देह हुआ-कही 'वा' मन की कमजोरी से मेरा वियोग असह्य लगने से तो यहा मेरे पीछे-पीछे नहीं चली आई? वे अपना कत्तव्य तो नहीं भूल गई? उन्होने तीखे स्वर से पूछा, "तूने यहा आने की इच्छा प्रकट की थी तो उहोने तुझे पकडा?" 'बा' चुप परन्तु सुशीला बहिन ने कहा, "नही, बापू ! मैं और 'वा' गिरफ्तार होकर आई हैं।" 'बा' ने भी बापू का अभि- प्राय समझकर कहा, "नही-नही, मैंने कोई माग नही की, उन्होने हमे पडा।" यह उत्तर सुनकर वापूशान्त हुए।