पृष्ठ:बा और बापू.djvu/४७

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46 बा और बापू "फोन नही कर सकता । सरकार का हुक्म है कि बाहर की दुनिया से भाप लागो का सम्पक नहीं रहना चाहिए।" "तो आप अस्पताल से प्रवन्ध कीजिए या अपनी पाकेट से, आपका कज़ चुका दिया जाएगा।" डाक्टर कुछ हुज्जत के वाद चला गया। शाम को दो सेब आए। पर उनका रस निकालने का कोई प्रबन्ध न था । तमाम रात और दिन-भर दस्त आने से 'बा' बहुत कमजोर हो गई थी। डाक्टर ने दवा की कोई व्यवस्था नहीं की थी। जिस कमरे में उहे रखा गया था, उसकी हवा इतनी गदी थी कि वहा बैठने से सिर में दर्द होने लगा। हवाई हमले से बचने के लिए सब खिड- कियो का तीन-चौथाई भाग ईंटो से चुन दिया गया था। इस कारण भीतर हवा नहीं आ सकती थी। पाखाने की नाली टूटी हुई थी, उसमे से सडी दुगन्ध आ रही थी। फश मे बहुत नमी थी। बाहर के बराडे भी ऊची-ऊची दीवारो से बन्द कर दिए गए थे। दूसरे दिन नौ बजे मेट्रन ने आकर कहा, "ग्यारह बजे आप लोगो को यहा से ले जाया जाएगा।" रात-भर दस्त के जागते रहकर इस समय 'वा' को कुछ भपकी लग गई थी। सुशीला वहिन ने जल्दी-जल्दी अपना सामान बाधा, दस बजे 'बा' को जगाया और प्रार्थना की। 'रामधुन' चल ही रही थी कि जेलर आ गया। एक कैदी महिला को जब मालूम हुआ वि पैसा न होने से 'चा' को फल नही मिल सके, तो उसने अपना पर्स सुशीला वह्नि को थमा दिया। उसमे से पाच रुपये लेकर सुशीला बहिन ने अपनी एक रगीन साडी उस महिला को दे दी। स्टेशन पर आकर इहे वेटिंग रूम में बैठाया गया। स्टेशन पर मोरगुल, भीड-माह वैसी ही थी ! 'वा' चुपचाप एक आराम धुर्सी पर पहो देखती रही, फिर एकाएक बोल उठी, "देस