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पृष्ठ:बा और बापू.djvu/५८

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प्रार्थना प्रार्थना में बापू को अटल विश्वास था। कहना चाहिए, प्रार्थना उनके जीवन का एक अविभाज्य अग था। प्रार्थना के नियत समय मे तनिक-सी भी देर वे सहन नहीं कर सकते थे। उनका कहना था कि वे बिना भोजन तो हफ्तो रह सकते हैं, हवा के बिना भी कुछ क्षण टिक सकते है, पर राम के बिना वे क्षण- भर भी नही जी सकते । उनका राम सर्वव्यापी था, वह जड- चेतन सभी मे व्याप्त था। उनका प्रत्येक काम राम के लिए था। प्राथना के समय मे वे सबको अतर्मुख बनने को कहते और अर्थ सहित उसका मनन करने पर जोर देते । उनका कहना था, राम तुम्हारे कठ से उतरकर हृदय मे बैठ जाना चाहिए, उन्हे यह दोहा बहुत प्रिय था माला तो कर मे फिरे, जीभ फिरे मुख माही । मनुवा तो चहुदिशि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ।। प्रम और दया से उनका हृदय लबालब था, पर वे कठोर भी कम न थे। पर दुख तो वे देख न सकते थे। पेलोभ, अहकार से वे परे थे। दुबले-पतले थे, पर अशक्त नही । एक क्षण भी खाली न बैठते थे, न किसीको बैठने देते थे। नीद पर उनका पूरा कावू था। रेल मे चाहे कितना ही शोरगुल क्यो न हो, वे निर्विघ्न सो जाते थे। और जितनी देर मे उठने को कहते, उतनी ही देर में उठ खडे होते थे। बच्चो से विनोद का तो वे कोई अवसर होन 1