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पृष्ठ:बा और बापू.djvu/६१

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उपवास बापू ने पद्न्ह वार उपवास किया। तीन बार 21-21 दिन तवनिराहार रहे। उनके निकटवर्ती जन ही यह जानते हैं कि इन उपवास के दिनो मे ये क्तिनी यातना सहते थे। यह यातना दो प्रकार की होती पो । एक तो उपवास के कारण उत्पन उनके अशक्त और ग्ण शरीर पर जो भयानन प्रतिक्रिया होती थी वह, और दूसरी, जिस मनोव्यथा के कारण वे उपवास करते ये उससे उत्पन्न मानसिक पीडा । प्राय तीसरे ही दिन उन्हे मतली प्रारम्भ हो जाती थी, जिसके कारण वे पानी भी नही पो पाते थे। विना पानी पिए पेशाब में कमी आ जाती थी और गुदों मे सरावी उत्पन्न होने लगती थी। बहुत बार तो उनकी देखरेस करने यासे डाक्टर, जो भारत के दिग्गज चिस्त्मिाशास्त्री होते थे, पररारर विवर्तव्यविमूढ़ हो जाते थे। परतु यापू कठिन से पठिन समय में भी स्थिर रहते और प्राय यह कहने कि जब तक प्रभ को मगमे शाम लेना है, मेरा वाल भी वारा नही हो सकता है। 19242 उपवाम मे एर दिडाक्टर सारी बहुत पवरा गए, क्योंरि उनर गुर्दो पो बहुत सराव हालत हो गई थी। उन्होने यापू से बढ़त आग्रह पिया रिये पोडा सा सतरे का रस से में। बापू ने पामे स्वर से कहा, "मुबह सर योर ठहरो।" गुरद जय मरटर ने मूत्र को परोगा को, सो मह देरावर दसा हो गए शियह नाम है।