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भूमिका

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क बार एक नये कहानी लेखक ने जिनकी एक-दो कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी थीं, मुझसे बड़े ईतमीनान के साथ कहा-"मैं पहले समझता था कि कहानी लिखना बड़ा कठिन है, परन्तु अब मुझे मालूम हुआ कि यह तो बड़ा सरल है । अब तो मैं नित्य एक कहानी लिख सकता हूँ ।" उनकी यह धारणा, मुझे लिखते हुए कुछ दु:ख होता है, बहुत शीघ्र ही बदल गई ।

नया कहानी लेखक समझता है कि केवल कथानक ( प्लाट ) रच देने से ही कहानी बन जाती है। भाषा, भाव, चरित्र-चित्रण इत्यादि से उसे कोई सरोकार नहीं रहता । यदि व्याकरण के हिसाब से भाषा ठीक है तो वह सर्वोतम भाषा है, कहानी में भाव अपने आप आ ही जाते हैं—कोई भी लेखक उनका आना रोक नहीं सकता,और चरित-चित्रण के लिए बदमाश, पाजी, धूर्त्त, सज्जन, दयावान् इत्यादि शब्द मौजूद ही हैं-इन्ही में से कोई एक शब्द लिख देने से चरित्र-चित्रण से भी सरलता पूर्वक