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[ थाती
 

है, जिसे मैं बड़ी सावधानी से अपने हृदय में छिपाए हूँ । इतने पर भी सुनना ही चाहते हो तो लो कहती हूँ, किन्तु देखो ! जो कहूँ वही सुनना और कुछ न पूछना ।

वे एक धनवान माता-पिता के बेटे थे। ईश्वर ने उन्हें अनुपम रूप दिया था। जैसा उनका कलेवर सुन्दर था, उससे कहीं अधिक सुन्दर थी उनका हृदय । वे बड़े ही नेक, दयालु और उदार प्रकृति के पुरुष थे । गाँव के बच्चे उन्हें देखते ही खुश हो जाते, बूढ़े आशीर्वाद की वर्षा करते, स्त्रियाँ उन्हें अपना सच्चा भाई और हितू समझती और नवजवान उनके इशारे पर नाचते थे। तात्पर्य यह कि वे सभी के प्यारे थे और सभी पर उनका स्नेह था ।

में उन्हीं के गाँव की बहू थी। मेरे पति वहीं प्राइमरी पाठशाला में मास्टर थे । घर में बूढ़ी सास थीं, मेरे पति थे और मैं थी। मँहगी का ज़माना था; २८}} में मुश्किल से गुजर होती थी ! घर के प्रायः सभी छोटे-मोटे काम हाथ से ही करने पड़ते थे।

एक दिन की बात है, मैं वैसे ही व्याह कर आई थी। मैं थीं शहर की लड़की; वहाँ तो नलों से काम चलता था; भला कुएं से पानी भरनी मैं क्या जानती मेरी

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