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बिखरे मोती]
 


चड़ी दरी पड़ी थी जिसके बीच में एक गोल मेज थी । मेज़ के आसपास कई कुर्सियां पड़ी थी । जव विश्व- मोहन ने तिवारी जी से चाय पीने का आग्रह किया और तिवारी जी को उनके आग्रह से चाय पीनी ही पड़ी तो वहां को साज-सामान देखकर तिवारी जी चकित हो गये । हप से उनकी अखेिं चमक उठीं । सुन्दर-सुन्दर प्यालों में मेज़ पर चाय पीने का तिवारी जी के जीवन में पहिला ही अवसर था। चाय पीने के बाद तिवारी जी ने दो गिन्नी वरीक्षा में देकर शादी पक्की कर ली। रास्ते में नारायण वोला--कहो तिवारी जो, है न लड़का हजारों में एक ? हैं। कोई तुम्हारे गांव में ऐसा ? जचे कपड़े पहन कर हैट लगा कर निकलता है तब कोई नहीं कह सकता कि साहब नहीं हैं। सब लोग झुक के सलाम करते हैं। घर में देखा है कितना परदा है। सव खिड़की-दरवाज्ञों पर चिकें पड़ी हैं। इनकी माँ बूढ़ी हो गई हैं । पर क्या मजाल कि कोई परछाई भी देख ले। दोनों समय चाय पीते हैं, कुर्सियों पर बैठते हैं।

तिवारी जी ने हर्पोन्मत्त होकर कहा-भाई नारायण, हम तुम्हारे इस उपकार के सदा अभारी रहेंगे । हमारे ढूंढे तो ऐसा घर-वर कभी न मिलता । हम देहात के

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