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बिखरे मोती]


था, परंतु स्टेशन पर खाने-पीने की सामग्री ठीक न मिलती थी; इसलिए मुझे शहर जाना पड़ा। बाज़ार में पहुँचते ही मैंने देखा कि जगह-जगह पर बड़े-बड़े पोस्टर्स चिपके हुए थे जिनमें एक वृहत् कवि-सम्मेलन की सूचना थी, और कुछ खास-खास कवियों के नाम भी दिए हुए थे। मेरे लिए तो कवि-सम्मेलन का ही आकर्षण पर्याप्त था, कवियों की नामावलि को देखकर मेरी उत्कंठा और भी अधिक बढ़ गई।

[ २ ]

दूसरी ट्रेन से जाने का निश्चय कर, जब मैं सम्मेलन के स्थान पर पहुँचा तो उस समय कविता पाठ प्रारम्भ हो चुका था; और उर्दू के एक शायर अपनी जोशीली कविता मजलिस के सामने पेश कर रहे थे। ‘दाद’ भी इतने ज़ोरों से दी जा रही थी कि कविता को सुनना ही कठिन हो गया था। ख़ैर, मैं भी एक तरफ चुपचाप बैठ गया, परन्तु चेष्टा करने पर भी आँखें स्थिर न रहती थीं; किसी की खोज में वे बार-बार विह्वल-सी हो उठती थीं। कई कवियों ने अपनी-अपनी सुन्दर रचनाएँ सुनाईं। सब के बाद एक श्रीमती जी भी धीरे-धीरे मंच की ओर अग्रसर