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बिखरे मोती]

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पहिली बार केवल ५ दिन ससुराल रहकर मैं अपने पिता के साथ मायके आ गई। ससुराल के ५ दिन मुझे ५ वर्ष की तरह मालूम हुए । मैंने जो रानीपने का सुनहला सपना देखा था, वह दूर हो चुका था । ससुराल से लौट कर मैंने तो कुछ नहीं कहा, किन्तु खवासन ने वहाँ के सब हाल-चाल बतलाए । माँ ने कहा— तो क्या रानी केवल कहने ही के लिये होती हैं; भीतर का हाल हमारे घरों से भी गया-बीता होता है?

मैं अपनी माँ के साथ मुश्किल से महीना, सवा महीना ही रह पाई थी कि मुझे बुलाने के लिये ससुराल से सन्देसा आया । राजाओं की इच्छा के विरुद्ध तिलभर भी मेरे पिता जी कैसे जाते ? न चाहते हुए भी, उन्हें मेरी बिदाई करनी ही पड़ी। इतनी जल्दी ससुराल जाना मुझे जरा भी अच्छा न लगा; परन्तु क्या करती, लाचार थी । सावन में जब कि सब लड़कियाँ ससुराल से मायके आती हैं, मैं ससुराल रूपी कैदखाने में बन्द होने चली ।देवर के साथ फिर मोटर पर बैठी। इस बार मैंने अपना छोटा-सा हारमोनियम भी साथ रख लिया था।

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