करके सभी ने घर की यात्रा की। उस दिन वह लोग घर नहीं पहुँच सके मार्ग में एक चट्टी में रात्रियापन की दूसरे दिन तीसरे पहर घर पहुंचे। इनलोगों का घर गंगा तीर से १६ कोस दूर था। विरजा इनलोगों के संग जाय कर इनके घर में रहने लगी, और घर के सब जने यथेष्ट स्नेह करने लगे।
जिस वृद्ध को पाठकों ने गंगातीर तनु त्याग करते देखा है उमका नाम रामतनु भट्टाचार्य था, यह विलक्षण मंगति मन्यन्त्र ग्रहस्त था। दम बीघा भूमि घेर कर उसका घर था और एक घर के बाहर और एक घर की खिरकी के पास यह दो पुकारिणी थी प्राय: दो सौ बीघा भूमि जोती बोई जाती थी। बाहर के घर और भीतर के दो उठान ऐसे घे जैसे घुड़दौड़ को होते हैं। एतङ्गित्र रुपया पैसा भी उधार दिया जाता था भट्टाचार्य महाशय के दो पुत्र हैं जिनमें ज्येष्ठ का नाम गोविन्दचन्द्र और कनिष्ट का गंगाधर है, इनके विवाह हो गये हैं इस समय गोविन्द का वय:क्रम पहविंशति और गंगाधर का अष्टादश वर्ष होगा। गंगाधर ने वर्द्धमान के इंगलिश विद्यालय में यत्किञ्जित लिखना पढ़ना सीख लिया था, हम यत्विरित कहते है किन्तु रामतनु भट्टाचार्य अपने मन में जानते थे कि