करने का अभिलाषी हुआ वह विदेशी था, इस हेतु पिता माता मे न कहकर गुप्त रूप से उसने विरजा से विवाह किया। उसकी इच्छा थी कि विरजा को कलकत्ते में ले जाय कर किसी विद्यालय में शिक्षा के लिये रख लेंगे, पर मार्ग में नौका डूब गई पाठकों ने वह आप देखा है। इस के आगे का वृत्तान्त बिरजा ने आपही कह दिया है।
गोविन्द की पत्नी भवतारिणी का पितालय कोननगर में था। यह लिखना पढ़ना जानती थी और अवकाशानुसार बिरजा या नवीनमणि को शिक्षा भी दिया करती थी। चार पांच वत्सर में उन दोनों ने एक प्रकार का लिखना पढ़ना सीख लिया, परन्तु बिरजा कुछ अधिक सीख गई थी। वह गृहिणी के पास बैठकर रामायण या महाभारत का पाठ किया करती थी और ग्राम को अनेक प्राचीना आय कर सुना करती थी।
बिरजा को अवस्था इस समय पञ्चदश वर्ष अतिक्रम कर गई थी और नवीन को भी यही वयम हो गई थी। बिरजा गौरांगी थी, नवीन श्यामांगी थी। गौरांगी होने से ही कोई रूपवती नहीं होती, और श्यामांगी होने सेही कोई कुत्सिता नहीं होती, परन्तु यह दोनों ही रूपवती थीं। तथापि बिरजा का रूप लावण्य चमत्कार वा, नवीन