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पृष्ठ:बिरजा.djvu/२२

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के संग मधुर व्यवहार करने वा स्वामी का मन लेकर चलने का परामर्श दिया। नवीन ने बिरजा के परामर्श से उस प्रकार की चेष्टा की, परन्तु हो नहीं सका। जो जिसके स्वभाव के विपरीति है वह भला कैसे हो सकता है? बिरजा ने सोचा था कि यदि गंगाधर का अनुराग नवीन से दृढ़ हो जायगा तो वह मुझ पर अनुरत न रहेगा पर वह कल्पना सिद्ध नहीं हुई। नवीन गंगाधर को बस न कर सकी। गंगाधर का अनुराग बिरजा पर दिन दिन बढ़ने लगा। एक दिन गंगाधर ने बिरजा से कहा "तुम कलकत्ते चलो यहां दासीभाव में कितने दिन रहोगी? कलकत्ते में विधवाविवाह होता है, मैं तुम से विवाह कर के वहां रहँगा"। बिरजा "ऐसी बात न कहा करो" यह कहकर गंगाधर के आगे से विद्युत् की नाई चली गई। गंगाधर अबोध या, मन में समझा कि विरना भी मेरे प्रति अनुरागिणी है।


पञ्चमाध्याय।

भाद्र मास है, शरद की पूर्वीय पवन ने मेघराशि हटाय कर अनन्त आकाश निर्मल कर दिया है। घर घाट सब सरोवर के जल से परिपूर्ण हैं। भट्टाचार्य महाशय के घर की और खिरकी की दोनों पुष्करिणियों में बड़ा जल भर रहा है। आज पूर्णिमा की रात्रि है आहारान्त में