पृष्ठ:बिरजा.djvu/२५

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इसी समय पुष्करिणी के तट पर एक पक्का ताल 'टप' करके गिरा। नवीन ने हँस करके कहा कि "मैं तब तुम्हारी प्रीति जानूं यदि मुझे यह ताल उठाय के लाय दो"।

बिरजा एक बात भी न कहकर ताल लेने चली गई। हमारे पल्ली ग्रामस्थ पाठक वा पाठिका जानते होंगे कि तालबारी में प्रायः ही छाटे २ अनेक वृक्ष लतादिक होते है इस तालबारी में भी वह थे। सुतराम् पूर्णमासी की रात्रि होने पर भी तालबारी में कुछ २ अन्धकार था। ताल का रङ्ग और अंधकार का रंग एकही होता है इस निमित्त जाते नाचही बिरजा को ताल नहीं मिला। वह वहाँ ढूंढ़ने लगी। ताल ढूंढने में बहुत विलम्ब लगा। अनेक क्षण पीछे ताल पाकर 'मिल गया' 'मिल गया' कहकर मस्तक पर धर कर घाट की ओर दृष्टि करके देखा तो जल से एक पुरुष निकलकर घर के भीतर घुस गया। यह देख कर बिरजा का शरीर थहराने लगा। परन्तु उसी समय साहस करके धीरे २ फिर घाट पर आई। घाट पर आय कर नवीन को नहीं देखा परन्तु पुष्करिणी का जल अत्यन्त गम्भीर बोध हुआ बिरजा का समस्त शरीर कम्पित होने लगा। हाथ का ताल अज्ञातावस्था में मिट्टी में गिर पड़ा। अन्त में बिरजा ने कम्पित हस्त से थाली उठाकर घर में प्रवेश किया। घर में आयकर जिस प्रकार और