पृष्ठ:बिरजा.djvu/२६

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किसी को सन्देह न हो उस प्रकार नवीन का अन्वेषण करने लगी, पर उसे नहीं पाया। नवीन का शयन गृह देखा, बत्ती लाने का छल करके बड़ी बहु के शयनगृह में गई, महाभारत का छल करको गृहिणी के घर में गई, कहीं भी नवीन को नहीं देखा। अनन्तर और कोई सन्देह न करे इस भय से और कुछ न करके बिरजा अपने घर में जाय कर सो रही।

मन उत्कण्ठित रहने से निद्रा नहीं होती, रात्रि दोपहर व्यतीत हो गई, परन्तु बिरजा की आंखों में निद्रा नहीं आई। बिरजा के मन में अनेक चिन्ता की तरंगें थी, केवल पार्श्व परिवर्तन करने लगी। इस प्रकार एक पहर और भी बीत गया। बिरजा ने उस समय सोचा कि अब सब निद्रित हैं एकबार घाट पर जाकर देखूँ तो क्या हुआ है? बोध होता है नवीन को किसी ने जल में डुबाय कर मार डाला। यदि यही हो तो वह इतने काल में ऊपर उछल आई होगी। बिरजा साहस पर निर्भर होकर धीरे धीरे घाट के ऊपर गई। देखा कि जल में शव तैरता है। बिरजा शव को देखते मात्रही पीछे हटकर घर के भीतर आई। और पीछे अपनी कक्ष (कोठरी) में आयकर विचारा कि अब क्या करूँ? हम दोनों जने एक संग घाट पर गये थे वह सभी जानते हैं। नवीन यदि आपही जल में डूब