भवतारिणी ने भी अनेक क्षण रोदन किया। उसके अनेक क्षण रोदन करने का कारण यह था कि वह नवीन और बिरजा दोनों को ही अधिक चाहती थी। उसको विश्वास नहीं हुआ कि विरजा ने नवीन का वध किया है। वह गंगाधर का चरित्र विलक्षण जानती थी और यह भी जानती थी कि गंगाधर की बिरजा पर आशक्ति जन्मी है। वरन इसीलिये दो एक वार बिरजा को सावधान करके उसने कहा भी था "बिरजे! सावधान! भ्रमर पीछ लगा है" इस पर बिरजा ने भी कहा था कि "जीजी! कुछ भय नहीं है"। बिरजा अवस्था में बालक ठीक थी, किन्तु धर्म्म भय उसे था। उसको बहुत बातें स्मरन हो आई किसी दिन गंगाधर ने बिरजा पर किस प्रकार सानुराग दृष्टिपात किया था, उसपर बिरजा किस प्रकार घूंघट मार कर हट गई थी यह स्मरन आया, गंगाधर नवीन से सचराचर किस प्रकार विरतिभाव प्रकाश करता था और वह भी गंगाधर के असद व्यवहार से किस प्रकार खेद करती थी, यह भी स्मरण आया। वह गृह कर्म छोड़कर रोने और सोचने अथवा सोचने और रोने लगी। घर नितान्त शून्य और शोकपरिपूर्ण बोध होने लगा, सभी के मुख पर विषाद का चिन्ह था और सभी शोकाकुल थे। गोविन्दचन्द्र शोक और लज्जा से अधोमुख होकर बाहर के घर में बैठे २
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